tag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post6589152778836221791..comments2023-06-07T21:04:17.772+05:30Comments on शब्द श्यामल: धनबाद के वे दिन...Shyam Bihari Shyamalhttp://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-50945531903900396802012-07-17T07:07:35.401+05:302012-07-17T07:07:35.401+05:30भाई असलम जी, सबसे पहले तो स्वयं के प्रति आपकी सद्...भाई असलम जी, सबसे पहले तो स्वयं के प्रति आपकी सद्भावनाओं के लिए आपका आभार जताऊं... मेरे उपन्यास 'धपेल' ( और 'अग्निपुरुष' भी ) का प्रकाशन राजकमल से हुआ है जिसका मुख्यालय दिल्ली में ही है। वैसे मेरे उपन्यासों को ऑनलाइन भी मंगाया जा सकता है जिनका लिंक यहां इस ब्लॉग पर किताबों के कवर व सूचना-संकेत के साथ उपलब्ध है। इसे यहां इस टिप्पणी के साथ भी पेस्ट कर रहा हूं.. http://www.rajkamalprakashan.com/index.php?p=sr&Field=author&String=Shyam%20Bihari%20\\Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-45830314069562920892012-07-17T07:01:13.550+05:302012-07-17T07:01:13.550+05:30आभार मित्रवर तुषार जी, आपके उत्साहवर्द्धन और भाई ...आभार मित्रवर तुषार जी, आपके उत्साहवर्द्धन और भाई सलमान रावी द्वारा पुराने दिनों के स्मरण के बाद कोशिश रहेगी कि इसे आगे बढ़ाया जाए। आपकी सद्भावनाएं ताकत दे रही है, बार-बार आभार..Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-64185244235885680202012-07-17T06:57:20.709+05:302012-07-17T06:57:20.709+05:30आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह बढ़ा है.. आभार..आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह बढ़ा है.. आभार..Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-76361740941389489682012-07-17T06:55:26.249+05:302012-07-17T06:55:26.249+05:30आभार बंधुवर तुषार जी..आभार बंधुवर तुषार जी..Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-82045827180559453292012-07-17T06:52:01.055+05:302012-07-17T06:52:01.055+05:30मित्रवर सलमान जी, आपने सही संकेत किया है, संघर्ष क...मित्रवर सलमान जी, आपने सही संकेत किया है, संघर्ष का वह दौर निश्चय ही अब तो दर्ज कर ही लिया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी ताकि पत्रकारिता को चमकदार, ग्लैमरस और रस से सराबोर पेशा भर समझने वाली आज की उत्तर आधुनिक पीढ़ी अपने समाज के उस अतीत को भी अवश्य जाने जब दो दशक पहले धनबाद में अभिव्यक्ति की ऐसी लड़ाइयां लड़ी गई हैं जिनमें बेबाक लिखने की कीमत कुछ कलम वालों ने अपने लहू से चुकाई थी। सलमान रावी, अशोक वर्मा और कुछेक अन्य ऐसे सिरफिरे वहां सक्रिय थे जिनके लिए मीडिया नौकरी का माध्यम से पहले एक मोर्चा था और इसका बाजाप्ता बार-बार ऐसा ही जोरदार प्रयोग किया गया। आग्रह है, उस दौरान की कुछ खबरों की कतरनें और फोटोग्राफ्स मेल करने का कष्ट करें। शमीम जी के आने पर मैंने तो यहां प्रसंगवश यों ही एक टिप्पणी दे डाली थी, आपके संकेत के बाद अब इसे संजीदगी से याद कर-करके लिपिबद्ध करने का प्रयास करूंगा। आभार और इससे अधिक वही पुराना फांकाकशी के दिनों वाला प्यार... सादर-सप्रेम- श्यामलShyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-86396863946697653372012-07-17T06:09:25.437+05:302012-07-17T06:09:25.437+05:30वाकई आज की सुबह एक जीवंत और उम्दा संस्मरण पढ़ने को...वाकई आज की सुबह एक जीवंत और उम्दा संस्मरण पढ़ने को मिला |भाई श्यामल जी ने एक साथ कई कवियों पत्रकारों से मुलाकात करा दिया |उम्मीद है इसे आगे भी जारी रक्खेंगे |आभार |जयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-5035644942263177852012-07-17T06:01:02.254+05:302012-07-17T06:01:02.254+05:30धनबाद और वाराणसी दोनों को समेटते एक अद्भुत संस्मरण...धनबाद और वाराणसी दोनों को समेटते एक अद्भुत संस्मरण पढ़ने को मिला |सुबह -सुबह तबीयत बिलकुल तरोताजा हो गयी |आशा है भाई श्यामल जी इसे आगे भी जारी रक्खेंगे |आभार |जयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-43630524553878085032012-07-17T05:48:18.892+05:302012-07-17T05:48:18.892+05:30भाई श्यामल जी यह पोस्ट जो एक यादगार संस्मरण है ,मै...भाई श्यामल जी यह पोस्ट जो एक यादगार संस्मरण है ,मैं एक ही साँस में पढ़ गया और लग रहा है कि इसे आगे भी जारी रक्खें |अद्भुत लेखन शैली |सुप्रभातं सर |जयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-78322664238296236632012-07-16T23:34:55.428+05:302012-07-16T23:34:55.428+05:30dear sir,
i asked somewhere in Delhi for your fi...dear sir, <br /><br />i asked somewhere in Delhi for your first novel "DHAPEL" but didn't get. i want to study this novel n nowadays m residing in Delhi. so plz let me knw if i want a copy of this, thn hw i shud contact u n pay what it cost.............<br /><br />wth warm regads,<br />Aslam-9899922597.Mohammad Aslamhttps://www.blogger.com/profile/10559418236494268566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-79429287717932881282012-07-16T15:38:13.226+05:302012-07-16T15:38:13.226+05:30पहले 'गैंग्स आफ वासेपुर' और फिर श्यामल जी ...पहले 'गैंग्स आफ वासेपुर' और फिर श्यामल जी के लेख नें एक बार फिर इस उन दिनों की याद दिला दी जब मैं धनबाद में हुआ करता था. धनबाद की धरती मेरी कर्मभूमि है उसी तरह जिस तरह यह श्यामल जी की और मेरे दूसरे दोस्तों की रही है. दो दशकों पहले धनबाद एक अजीब सी जगह हुआ करती थी. श्यामल जी नें कई यादें ताज़ा कर दीं. हम लोगों का संघर्ष. हम लोगों यानी के हम पत्रकारों का संघर्ष. किस तरह श्यामल जी और दूसरे मित्रों जैसे रंजन झा, अशोक वर्मा, अजय सिन्हा, और अनवर शमीम नें तब मेरा साथ दिया जब मुझे मार कर फ़ेंक दिया गया था. मैं वो दौर भूल नहीं सकता. रोज़ रात श्यामल जी, रंजन झा, अजय सिन्हा और रेलवे यूनियन के हमारे मित्र सत्रजीत सिंह मुझे मेरे घर छोड़ने जाया करते थे. कितना संघर्ष हुआ. मुझे उम्मीद है कि श्यामल जी उन दिनों की बातों और घटनाओं पर भी कुछ लिखें जो धनबाद स्टेशन रोड के हमारे चाय के अड्डे से शुरू हुईं थी. <br /><br />सादर, <br />सलमान रावीSALMAN RAVIhttps://www.blogger.com/profile/02204816170470050332noreply@blogger.com