tag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post865035188551549556..comments2023-06-07T21:04:17.772+05:30Comments on शब्द श्यामल: आंख में अंगुली 0 कौन हैं ये लाइकलपकु और कमेंटकपटी तत्वShyam Bihari Shyamalhttp://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-2030422623477322772011-05-11T16:04:20.365+05:302011-05-11T16:04:20.365+05:30किताब देने का आइडिया अच्छा है। हालांकि अच्छे विचार...किताब देने का आइडिया अच्छा है। हालांकि अच्छे विचार पर अमल करना कठिन। <br />फेसबुक पर बहस के सवाल पर मेरी सोच है कि भारत के किसी भी गली चौराहे पर निकल जाएं, सब विशेषग्य ही होते हैं। क्रिकेट का खेल चल रहा हो औऱ तेंदुलकर आउट हो जाए, सभी लोग उसे अपने अपने तरीके से सलाह देंगे, लेग की गेंद ऑफ की ओर नहीं खेलना चाहिए था, उछलती गेंद दबाकर खेलनी चाहिए थी, आदि-आदि। फेसबुक भी वैसा ही साधन है और सबको अपनी बात रखने का हक है। उसमें कभी कभी सार्थक मसलों पर भी चर्चा हो जाती है, कभी-कभी अच्छे मित्र मिल जाते हैं और कभी लगता है कि इस फेसबुक से एकाउंट बंद कर देना ही बेहतर विकल्प है। आज धूप अच्छी है--- पर अगर टिप्पणी आ रही है तो वह भी अच्छा और नहीं आ रही है तो वह भी अच्छा। टिप्पणी करने वाला जाने कि उसने टिप्पणी क्यों की। टिप्पणी करने की कोई मजबूरी भी नहीं है। चाहे तो करें, चाहे तो न करें।<br />तमाम विद्वान ऐसे हैं जो टिप्पणी करवाने पर अपना एकाधिकार समझते हैं, क्योंकि वे बुद्धिजीवी होते हैं। वे जवाब देने को बेवकूफी समझते हैं। तमाम विद्वान ऐसे होते हैं जो अपनी पोस्ट पर तो खूब टिप्पणी चाहते हैं, दूसरे को तवज्जो नहीं देते क्योंकि वह उनकी नजर में बेमतलब की बात कर रहा होता है। तमाम लोगों के पास पद प्रतिष्ठा की धमक होती है और उसकी चमचागीरी में पचासों लोग जै-जै कर देते हैं, कुछ नौकरी की आस में जैजै कर देते हैं। विविधता से भरा देश है अपना।satyendrahttps://www.blogger.com/profile/12893714424891990810noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-91218439832338446142011-05-11T10:01:21.686+05:302011-05-11T10:01:21.686+05:30आदरणीय श्यामल जी, बहुत ही संजीदा विषय पर आपने यह आ...आदरणीय श्यामल जी, बहुत ही संजीदा विषय पर आपने यह आलेख लिखा है, सबसे पहले तो मेरे विचार से किसी को भी यदि उपहार दिया जाय तो यह जरूर सोचना चाहिए की जो उपहार हम दे रहे है उसकी उपयोगिता ग्रहण करने वाले के सन्दर्भ में क्या है, महंगी से महंगी उपहार भी कभी कभी प्रयोग के बिना किसी कोने में पड़ा होता है किन्तु कोई बिलकुल सस्ता सा उदाहरण स्वरुप एक सुन्दर सा कलम दिल के पास होता है और हमेशा उपहार देने वाले की याद दिलाता है | आप का सुझाव बिलकुल ही सही है, किताब से बड़ा कोई दोस्त होता ही नहीं है, और किताब एक धरोहर की तरह है जो आने वाली पीढ़ी के लिए भी उपयोगी है, साथ में उसके पीछे का अपरोक्ष प्रभाव का विवेचना भी आपने बहुत ही सही तरह से किया है मैं बिलकुल सहमत हूँ |<br />रही फेस बुक पर टिप्पणियों की बात तो इसका अलग ही समीकरण है, यदि कोई सुंदर और आकर्षित सी फोटो लगाईं हुई कथित महिला प्रोफाइल पर यह स्टेटस आता है कि "आज मेरी सैंडिल टूट गई" तो उसपर टिप्पणियों के वोले गिरने लगते है, किन्तु यदि किसी पुरुष प्रोफाइल से यह स्टेटस भी आता है कि "आज एक्सीडेंट में मेरी कमर टूट गई" तो भी कोई पूछने वाला नहीं है | बहुत सारे मित्र like कर देंगे, कमर टूटने को भी लोग पसंद करते है |<br />सब मिलाकर आपने एक सारगर्भित आलेख लिखा है, बहुत बहुत बधाई आपको |<br />आपका<br />गणेश जी "बागी"<br />संस्थापक<br />www.openbooksonline.com<br />(एक सामाजिक और साहित्यिक वेब साईट)Ganesh Jee "Bagi"https://www.blogger.com/profile/10678742825478935989noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-28042182542892036952011-05-11T09:56:35.824+05:302011-05-11T09:56:35.824+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Ganesh Jee "Bagi"https://www.blogger.com/profile/10678742825478935989noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-17898613576195437552011-05-11T09:24:51.199+05:302011-05-11T09:24:51.199+05:30श्याम भाई सार्थक बहसों के साथ हंसी मज़ाक भी जरूरी ...श्याम भाई सार्थक बहसों के साथ हंसी मज़ाक भी जरूरी है, जिस महफ़िल में हंसी मजाक न हो वहाँ का माहौल भारी लगने लगता है.Kamal Dubeyhttps://www.blogger.com/profile/00531279326377444710noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-10720044034494832732011-05-11T09:01:53.818+05:302011-05-11T09:01:53.818+05:30फेसबुक पर ही ऐसा ज्यादा देखने को मिल रहा है। कुछ ल...फेसबुक पर ही ऐसा ज्यादा देखने को मिल रहा है। कुछ लोगों ने एकदम मजाक बनाकर रख दिया है इस शक्तिशाली माध्यम को। स्वस्थ और सार्थक विचार-विनिमय की जगह चुटकुलेबाजी और मसखरापन के नजारे देख किसी भी जिम्मेदार नागरिक को चिंता होना लाजिमी है। लोग किसी से अपना संबंध खराब नहीं होने देना चाहते, इसलिए गलत देख-महसूस करके भी मौन रह जाते हैं! आपने इसे गंभीरता से उठाया है, यह अच्छी बात है!savitahttps://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-43834062723683244852011-05-11T08:56:50.145+05:302011-05-11T08:56:50.145+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.savitahttps://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4157981430539694297.post-59133671453971021132011-05-11T08:06:40.885+05:302011-05-11T08:06:40.885+05:30आपने सही कहा खतरे यहाँ भी हैं और गंभीर भी | आपका ल...आपने सही कहा खतरे यहाँ भी हैं और गंभीर भी | आपका लेख कई विन्दुओं की ओर ध्यान आकर्षित करता है और उनपर चिंतन की माँग भी अपेक्षित है |फेस बुक भी कम से कम हमारे देश में जुगाडू प्रक्रति का हो गया है | गनीमत कि बात बस ना से हाँ भला वाली ही है |<br />आपकी बात पर विमर्श हो और रास्ता निकले सुखद होगा |<br />-अभिनव अरुणअभिनव अरुणhttps://www.blogger.com/profile/14584383228744601711noreply@blogger.com