कविताएं 0 श्याम बिहारी श्यामल
नदी - 1
नदी ने जब-जब चाहा
गीत गाना
रेत हुई
कंठ रीते
धूल उड़ी
खेत हुई
गीत गाना
रेत हुई
कंठ रीते
धूल उड़ी
खेत हुई
नदी - 2
चट्टानों से खूब लड़ी
बढ़ती चली
बहती गई
मगर वह ठहरी नदी
बाँधी गई
साधी गई
बढ़ती चली
बहती गई
मगर वह ठहरी नदी
बाँधी गई
साधी गई
नदी - 3
वह चाहती थी
सूखी धरती को तर करना
मरुथल को हरा-भरा
राह रोकी पर्वतों ने
आड़े आईं चट्टानें
मगर वह रुकी नहीं
मुड़-मुड़कर निकली आगे
वह टूटी नहीं
पराजित झुकी नहीं
सूरज को निगला
चाँद को गले उतारा
आकाश काँप उठा
अब आँखें उसकी भासित थीं
वह बिफ़र रही थीं
निकली थी महासमर में
रणचंडी बनकर
सूखी धरती को तर करना
मरुथल को हरा-भरा
राह रोकी पर्वतों ने
आड़े आईं चट्टानें
मगर वह रुकी नहीं
मुड़-मुड़कर निकली आगे
वह टूटी नहीं
पराजित झुकी नहीं
सूरज को निगला
चाँद को गले उतारा
आकाश काँप उठा
अब आँखें उसकी भासित थीं
वह बिफ़र रही थीं
निकली थी महासमर में
रणचंडी बनकर
बहुत सुन्दर शब्दचित्र!
जवाब देंहटाएंहार्दिक अनौपचारिक आभार डाक्टर साहब...
जवाब देंहटाएंतीसरी कविता शब्द चित्रों से थोडा आगे बढ़ती है, इसलिए अन्य की तुलना में थोडा अधिक असर छोडती है. इतनी छोटी कविताओं के साथ अक्सर दिक्क़त यह रहती है कि वे पहले पाठ में आकृष्ट तो करती हैं, स्मृति में टिकती नहीं, क्योंकि किसी बड़े सत्य का उद्घाटन नहीं करतीं.
जवाब देंहटाएंमै जल था, लेकिन अब जल रहा हू, शायद अपने अस्तित्व निगल रहै हू,
जवाब देंहटाएंनदी के तीन पक्ष.. जीवन की व्याख्या कर रही है नदी इन तीनो कविताओं में... श्यामल जी काफी दिनों बाद आपकी कविता देखने को मिली.... बढ़िया लगा पढ़ कर...
जवाब देंहटाएंअरुण चन्द्र राय जी, आपकी टिप्पणी से शक्ति मिली है। आभार साथी।
जवाब देंहटाएंआभार शिशिर जी...
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना है |सुन्दर चित्र और चित्रण |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
परसों टिप्पणी की थी, छोटी सी. मयंक जी की टिप्पणी के बाद आ भी गई थी, आज देखा तो गायब !
जवाब देंहटाएंपहली दोनों कविताएं तो शब्द-चित्र बन कर रह गई हैं, यद्यपि आकृष्ट करती हैं, पर साथ ही अधूरी लगती हैं. जैसे झटके से कलम रुक गई हो. तीसरी कुछ अधिक कहती है, और 'बड़ा' भी कहती है. नदी के कई-कई रूप सामने आते हैं. बधाई.
सुन्दर बिम्ब और संकेतों से सजी खूबसूरत क्षणिकाएं....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!यदि किसी ब्लॉग की कोई पोस्ट चर्चा मे ली गई होती है तो ब्लॉगव्यवस्थापक का यह नैतिक कर्तव्य होता है कि वह उसकी सूचना सम्बन्धित ब्लॉग के स्वामी को दे दें!
जवाब देंहटाएंअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
achchhi hain teenon kshnikaen ..nadi ke vistar ko kshanon mein samete hue..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ...........!!
जवाब देंहटाएंदिनेश जी, अपर्णा जी, मयंक जी, हबीब जी और आशा जी... आप सबका हार्दिक आभार...
जवाब देंहटाएंनदी के माध्यम से अच्छे भाव-चित्र देखने को मिलें कविताओं में ! बधाई श्यामल जी !
जवाब देंहटाएंजीवंतता से भरी अर्थपूर्ण कविताएं ………
जवाब देंहटाएंsundar hain shyam ji.. nadi jeevan dayini hai, haar nhi maanti .. ye bhav sundarta se piroya hai aapne..
जवाब देंहटाएंअरे वाह! हाइकू की तरह की कविताएँ हैं ये तो.नदी के ये चित्र सोचने को मजबूर करते हैं.यह उसकी विडम्बना की जब वह गीत गाना चाहती है तो रेत में तब्दील हो जाती है. अच्छा लगा इन्हें पढ़ना...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण,प्रभावपूर्ण, छोटी-छोटी कविताओं के लिए बहुत बड़ी बधाई !!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्यामल जी, कविता रच नहीं सकी है... काव्याणु काव्य वस्तु में बदल नहीं पाई है... अनायस पकड़ में आये काव्याणु को काव्य वस्तु में बदलने के लिए आयास की जरूरत है... विस्तार से फिर कहीं..
जवाब देंहटाएंकविताओं का कथ्य इतना अधिक मुखर हुआ कि नदी का रूपक अपने ही विरुद्ध हो गया। एक और दो तो फिर भी ठीक हैं
जवाब देंहटाएंनदी कि खूबसूरत अभिव्यक्ति
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