दो कविताएं 0 श्याम बिहारी श्यामल
फिर रचूंगा मैं
धार पर ओठंघकर
टेरूंगा जिन्दगी
हंकाऊंगा बार-बार
परबत पर प्यार
गुनगुनाकर बनाऊंगा निर्धूम
हींड़-हांड़कर छोड़ा हुआ आकाश
रचूंगा
मैं रचूंगा फिर
सूरज-चांद से लैस कविता
हरी-भरी और सुन्दर
फिर नये किनारे
फिर नया समुन्दर
यह जो हूं मैं
शिथिल पड़ जाने से
ठीक एक क्षण पहले भी
धरूँगा धार
लगातार
रोशनी पर
हवा की चोंख जीभ पर
खोलेगी कंठ
युगों-युगों तक
मेरी कविता
जब ख़ूब तपेगी धरती
ताल-तलैया चटकेंगे
आधी रात बीतने पर
झुलसे पेड़ राहत लेंगे
तब हाथ बढ़ा चट्टान कोई
माथा मेरा सहलाएगी
उसके ही अंतस्थल में
सदियों तक
जिएगा मेरा अंश
नहीं लिखूँगा मैं मोर्चेबंदी में
पोथा-भर की वसीयत
या ख़्वाहिशों-भरी कविता कोई
मौत के बारे में नहीं है मेरे पास
कोई धाँसू दार्शनिक पहाड़ा
मैं खिलूँगा कहीं ज़रूर
फैल जाऊँगा यहाँ से वहाँ तक
गूँज उठूँगा समुद्र पर
और परबत-परबत
हज़ार-हज़ार कंठों में बस जाऊँगा
मैं जानता हूँ
अब नहीं रोका जा सकता मुझे
खिलने और गूँजने से
बसने और दिखने से
ठीक एक क्षण पहले भी
धरूँगा धार
लगातार
रोशनी पर
हवा की चोंख जीभ पर
खोलेगी कंठ
युगों-युगों तक
मेरी कविता
जब ख़ूब तपेगी धरती
ताल-तलैया चटकेंगे
आधी रात बीतने पर
झुलसे पेड़ राहत लेंगे
तब हाथ बढ़ा चट्टान कोई
माथा मेरा सहलाएगी
उसके ही अंतस्थल में
सदियों तक
जिएगा मेरा अंश
नहीं लिखूँगा मैं मोर्चेबंदी में
पोथा-भर की वसीयत
या ख़्वाहिशों-भरी कविता कोई
मौत के बारे में नहीं है मेरे पास
कोई धाँसू दार्शनिक पहाड़ा
मैं खिलूँगा कहीं ज़रूर
फैल जाऊँगा यहाँ से वहाँ तक
गूँज उठूँगा समुद्र पर
और परबत-परबत
हज़ार-हज़ार कंठों में बस जाऊँगा
मैं जानता हूँ
अब नहीं रोका जा सकता मुझे
खिलने और गूँजने से
बसने और दिखने से
मैं खिलूँगा कहीं ज़रूर
जवाब देंहटाएंफैल जाऊँगा यहाँ से वहाँ तक
गूँज उठूँगा समुद्र पर
और परबत-परबत
हज़ार-हज़ार कंठों में बस जाऊँगा
जन्मदिन पर बेहतरीन और उत्साह जगाती रचना।
बहुत बहुत मुबारक हो सर!
सादर
हार्दिक आभार बंधुवर यशवंत जी..
हटाएंकल 08/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सद्भावनाओं के लिए आभार मित्रवर यशवंत जी..
हटाएंबहुत ही सुंदर कविताएं...विचारों का एक खुबसूरत गुलदस्ता...युं ही आप हमेशा-हमेशा रचते रहें सुंदर और विचारवान कविताएं...जन्मदिन की अनंत-अंतरंग शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंजीवन में भरा है आपका अनंत प्यार...
हटाएंइसी से तो ऊर्जस्वित मेरा यह संसार...
कुछ भी कहूं शुक्रिया या कि आभार...
गूंजेगा दिखेगा सिर्फ प्यार ही प्यार...
रचना कोई भी हो कथा अथवा कविता...
शब्द-शब्द में प्रवहमान सिर्फ सविता...
जन्मदिन की शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी लगाई जा रही है!
सूचनार्थ!
हार्दिक आभार आदरणीय मयंक जी..
हटाएंसुन्दर अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
हार्दिक आभार यशोदा जी..
हटाएंमैं खिलूँगा कहीं ज़रूर
जवाब देंहटाएंफैल जाऊँगा यहाँ से वहाँ तक
गूँज उठूँगा समुद्र पर
और परबत-परबत
हज़ार-हज़ार कंठों में बस जाऊँगा
बहुत सुंदर....!
हार्दिक आभार पूनम जी..
हटाएंमैं जानता हूँ
जवाब देंहटाएंअब नहीं रोका जा सकता मुझे
खिलने और गूँजने से
बसने और दिखने से ..............
हाँ, सच नहीं रोका जा सकता ! रुकने ही कहाँ देगा प्रतिभा का प्रबल वेग ! अच्छी कविता श्यामल जी !बधाई !
सद्भावना-संबल के लिए हार्दिक आभार बंधुवर अरुण जी..
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