श्रद्धांजलि 0 महाकवि जानकीवल्लभ शास्त्री की कविताएँ

जानकीवल्लभ शास्त्री

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           की कुछ कविताएँ 

 ज़िंदगी की कहानी  

     
ज़िंदगी की कहानी रही अनकही !
        दिन गुज़रते रहे, साँस चलती रही !

अर्थ क्या ? शब्द ही अनमने रह गए,
कोष से जो खिंचे तो तने रह गए,
वेदना अश्रु-पानी बनी, बह गई,
        धूप ढलती रही, छाँह छलती रही !

बाँसुरी जब बजी कल्पना-कुंज में
चाँदनी थरथराई तिमिर पुंज में
पूछिए मत कि तब प्राण का क्या हुआ,
        आग बुझती रही, आग जलती रही !

जो जला सो जला, ख़ाक खोदे बला,
मन न कुंदन बना, तन तपा, तन गला,
कब झुका आसमाँ, कब रुका कारवाँ,
        द्वंद्व चलता रहा पीर पलती रही !

बात ईमान की या कहो मान की
चाहता गान में मैं झलक प्राण की,
साज़ सजता नहीं, बीन बजती नहीं,
        उँगलियाँ तार पर यों मचलती रहीं !

और तो और वह भी न अपना बना,
आँख मूंदे रहा, वह न सपना बना !
चाँद मदहोश प्याला लिए व्योम का,
        रात ढलती रही, रात ढलती रही !

यह नहीं जानता मैं किनारा नहीं,
यह नहीं, थम गई वारिधारा कहीं !
जुस्तजू में किसी मौज की, सिंधु के-
        थाहने की घड़ी किन्तु टलती रही !

बौराए बादल

क्या खाकर बौराए बादल?
झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
कंचन-महल नहाए बादल!

दूने सूने हुए घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर मचाए बादल!

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार गुँजाए बादल!

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

गुलशन न रहा, गुलचीं न रहा



गुलशन न रहा, गुलचीं न रहा, रह गई कहानी फूलों की,
महमह करती-सी वीरानी आख़िरी निशानी फूलों की ।

जब थे बहार पर, तब भी क्या हँस-हँस न टँगे थे काँटों पर ?
हों क़त्ल मज़ार सजाने को, यह क्या कुर्बानी फूलों की ।

क्यों आग आशियाँ में लगती, बागबाँ संगदिल होता क्यों ?
काँटॆ भी दास्ताँ बुलबुल की सुनते जो ज़ुबानी फूलों की ।

गुंचों की हँसी का क्या रोना जो इक लम्हे का तसव्वुर था;
है याद सरापा आरज़ू-सी वह अह्देजवानी फूलों की ।

जीने की दुआएँ क्यों माँगीं ? सौंगंध गंध की खाई क्यों ?
मरहूम तमन्नाएँ तड़पीं फ़ानी तूफ़ानी फूलों की ।

केसर की क्यारियाँ लहक उठीं, लो, दहक उठे टेसू के वन
आतिशी बगूले मधु-ऋतु में, यह क्या नादानी फूलों की ।

रंगीन फ़िज़ाओं की ख़ातिर हम हर दरख़्त सुलगाएँगे,
यह तो बुलबुल से बगावत है गुमराह गुमानी फूलों की ।

'सर चढ़े बुतों के'- बहुत हुआ; इंसाँ ने इरादे बदल दिए;
वह कहता : दिल हो पत्थर का, जो हो पेशानी फूलों की ।

थे गुनहगार, चुप थे जब तक, काँटे, सुइयाँ, सब सहते थे;
मुँह खोल हुए बदनाम बहुत, हर शै बेमानी फूलों की ।

सौ बार परेवे उड़ा चुके, इस चमन्ज़ार में यार, कभी-
ख़ुदकिशी बुलबुलों की देखी ? गर्दिश रमज़ानी फूलों की ?

 

 

 

 तन चला संग पर प्राण रहे जाते हैं 

तन चला संग, पर प्राण रहे जाते हैं !

जिनको पाकर था बेसुध, मस्त हुआ मैं,
उगते ही उगते, देखो, अस्त हुआ मैं,
हूँ सौंप रहा, निष्ठुर ! न इन्हें ठुकराना,
मेरे दिल के अरमान रहे जाते हैं !

"किसके दुराव, लूँगा स्मृति चिह्न सभी से,
कर बढ़ा कहूँगा : भूल गये न अभी से !"
-था सोच रहा, अभिशाप भरे आ तब तक
-हे देव, अमर वरदान रहे जाते हैं !

आओ हमसब मिल आज एक स्वर गाएँ,
- रोते आएँ, पर गाते-गाते जाएँ !
मैं चला मृत्य की आँखों का आँसू बन,
मेरे जीवन के गान रहे जाते हैं !
('रूप-अरूप)

                             स्याह-सफ़ेद  


स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !

मैं अपने में कोरा-सादा
मेरा कोई नहीं इरादा
ठोकर मर-मारकर तुमने
बंजर उर में शूल उगाए ।

स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !

मेरी निंदियारी आँखों का-
कोई स्वप्न नहीं; पाँखों का-
गहन गगन से रहा न नता,
क्यों तुमने तारे तुड़वाए ।

स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !

मेरी बर्फ़ीली आहों का
बुझी धुआँती-सी चाहों का-
क्या था? घर में आग लगाकर
तुमने बाहर दिए जलाए !

स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !

 महाकवि जानकीवल्लभ शास्त्री की कविताएँ कविता कोश पर-----
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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7 comments:

  1. विनम्र श्रद्धांजलि नमन ... आभार उनकी रचनाये पढवाने का....

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  2. झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
    कंचन-महल नहाए बादल!

    लगता है कि रांची उच्च न्यायालय के बादल हैं....

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  3. बहुत सुंदर कविताएं भाई श्यामल जी शास्त्री जी दिनकर जी के समकालीन रहे उनको पढ़ना उन पर लिखना हमारा सौभाग्य है |बधाई और शुभकामनाएं |

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  4. कविताएं पढवाने के लिए आभार, बहुत सारी नयी पुरानी यादें भी ताज़ा हो गईं… आपका ब्लॉग भी पहली बार देखने का अवसर मिला… बधाई!

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  5. नमन!
    इस संग्रहणीय प्रस्तुति के लिए आभार!

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  6. इतने अच्छे चयन और प्रस्तुति का पूरा नाश ये बनावटी तस्वीरें किये दे रही हैं. इन्हें हटा दीजिए .

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