सविता सिंह की कथा-भंगिमाएं


 
                       


लोककथा


सच्ची मित्रता
                

एक राजा था। उसका एक मंत्री था। दोनों के एक-एक पुत्र थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। कुछ दिनों के बाद राजा के पुत्र का विवाह दूसरे राज्य की राजकुमारी से तय हो गया। निश्चित समय पर राजा अपने पुत्र की बारात लेकर चल पड़ा। चलते-चलते रास्ते में ही रात हो गयी। सारे बाराती एक पेड़ के नीचे जो कि बहुत ही विशाल था, सो गये।
अचानक मंत्री-पुत्र की नींद खुल गयी। उसके कानों में पेड़ पर बैठे तोता-मैना की आवाज आ रही थी। मंत्री-पुत्र पक्षियों की भाषा समझता था। वह ध्यान से तोता-मैना की बात सुनने लगा। तोता कह रहा था, ‘‘...मैना रानी, जानती हो यह राजा के बेटे की बारात जा रही है लेकिन यह बारात दुल्हन लेकर नहीं आयेगी! ...दूल्हा बना राजकुमार भी बारात के साथ वापस नहीं आ सकेगा! ’’
‘‘ क्यों, क्यों भला?’’ मैना ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘ बारात बगैर दूल्हा़-दुल्‍हन के क्यों वापस आयेगी?’’
‘‘क्योंकि दूल्हे की मौत हो जायेगी...’’ तोता बोला।
मैना ने पूछा, ‘‘ कैसे?’’
‘‘...जब दूल्हा बना राजकुमार अपनी ससुराल के मुख्य दरवाजे पर पहुंचेगा तभी मुख्य दरवाजा उसके ऊपर गिर जायेगा... इसमें  उसकी मौत हो जायेगी! ’’ तोता ने दुःख के साथ कहा।
‘‘ तोता राजा, ’’ मैना का स्वर आर्द्र हो उठा, ‘‘...क्या राजकुमार के बचने का कोई उपाय नहीं है?’’
‘‘ है क्यों नहीं! ’’ तोता ने  बताया, ‘‘ ...अगर कोई दूसरा व्यक्ति राजकुमार के पहले मुख्य दरवाजे को पार कर जायेगा तो यह अनहोनी टल जायेगी! ’’
मैना खुशी से चहक उठी, ‘‘...चलो अच्छा है, कोई तो पहले मुख्य दरवाजा पार कर ही लेगा ... भगवान इतने निष्ठुर नहीं हैं! तब तो यह बारात अवश्य ही दूल्हा-दुल्हन को लेकर वापस आयेगी! यहां भी आते समय जरूर रुकेगी ...तब मैं भी इस सुंदर राजकुमार की दुल्हन को देख सकूंगी! ’’
तोता बोला, ‘‘ अरी मैना, इतनी खुश न हो क्योंकि अगर सौभाग्य से यदि राजकुमार दरवाजे पर बच भी गया तो इसके बाद जब वह वहां खाना खा रहा होगा तब भी एक खतरे का योग है... खाते समय उसके गले में मछली का कांटा फंसेगा और उसकी इसी के चलते मौत होगी!’’
‘‘...क्यों तोता, ...’’ मैना फिर व्यग्र हो उठी, ‘‘...अब इसका कोई उपाय नहीं है कि राजकुमार की जान फिर बच जाये! ’’
‘‘ है क्यों नहीं! ’’ तोता ने बताया, ‘‘ ...इसका भी उपाय है! अगर कोई राजकुमार वाला खाना खा ले तो वह उस समय बच जायेगा ...लेकिन मौत तो उसके भाग्य में लिखी ही है ...क्योंकि यदि अगर अभी बच भी जाये तो उस समय जरूर मरेगा जब कोहबर में राजकुमारी के साथ सोयेगा! दोनों के सो जाने पर राजकुमारी की नाक से एक भयंकर सांप निकलेगा जो राजकुमार को डंस लेगा! ’’
‘‘...इससे बचने का उपाय ?’’ मैंना ने तुरंत प्रश्न किया।
‘‘ अगर कोई और कोहबर में रहे और सांप को मार डाले तो मौत टल सकती है! इसके बाद वह सकुशल दुल्हन के साथ अपने घर लौट सकता है! ’’
‘‘ चलो, अच्छा है!’’ मैना चहकी, ‘‘ ...भगवान करे कोई हमारी बातें सुन और समझ रहा हो ...बेचारे राजकुमार की जान बच जानी चाहिए! ’’
‘‘  तुम्हारी बात तो ठीक है ’’ तोता बोला, ‘‘...लेकिन अगर पूछने पर  वह व्यक्ति हमारी बातों को किसी से बतायेगा तो वह पत्थर का हो जायेगा! ’’
‘‘...इसका भी उपाय होगा ही! ’’ मैना ने कहा, ‘‘...यह भी जल्दी से बता दो ताकि वह व्यक्ति पत्थर से फिर इंसान बन सके! ’’ 
‘‘...अगर राजकुमार और राजकुमारी अपने पुत्र की बलि पत्थर की मूर्ति के सामने देंगे तो वह  जिंदा हो जायेगा! ’’ तोता ने बताया।
‘‘....अब यह भी बता दो कि राजकुमारी और राजकुमार के पुत्र को कैसे जिंदा किया जायेगा? ’’
‘‘...मैना, तू बहुत दयालु है और चतुर भी! पत्थर की मूर्ति जब जीवित होगी तो बच्चे को कैसे जिंदा करना है, यह उसे स्वयं पता चल जायेगा! ’’ तोता ने बताया और आगे बोला, ‘‘ चलो, अब हमदोनों भी थोड़ी झपकी ले लें! राजकुमार के भाग्य में जो लिखा होगा वह तो होगा ही! ’’
मैना ने धीरे से हुंकारी भरी। सारी बातें सुन लेने के बाद मंत्री-पुत्र ने भी करवट बदली और सो गया। सुबह होने पर सारे बाराती मुंह-हाथ धोकर नाश्ता करने के बाद चल पड़े। 
बारात पहुंची। जैसे ही राजकुमार मुख्य दरवाजे तक आया वैसे ही मंत्री-पुत्र ने अपने घोड़े को जोर से एड़ लगायी और मुख्य दरवाजे को पार कर गया। सबको आश्चर्य हुआ, परंतु वह राजकुमार का मुंहलगा मित्र था, किसी ने कोई विरोध नहीं किया।
जब राजकुमार के आगे खाना परोसा गया तो मंत्री-पुत्र ने अपने खाने की थाली उसके आगे कर उसकी थाली खींच ली और तुरंत खाने लगा। सबको गुस्सा आ गया लेकिन राजकुमार हंसने लगा। जब विवाह के बाद राजकुमार और राजकुमारी कोहबर में सोने गये तो जिद करके मंत्री-पुत्र भी साथ लग गया। लोगों ने विरोध किया तो राजकुमार ने सबको शांत किया। जब दोनों सो गये तो राजकुमारी की नाक से एक बड़ा ही भयंकर सांप निकला। मंत्री-पुत्र तो जगा ही इसीलिए था। उसने सांप को जल्दी से पकड़ा और तलवार से  दो टुकड़े कर खिड़की से बाहर फेंक दिया। तभी राजकुमारी की नींद टूट गयी।  उसकी नजर मंत्री-पुत्र की नंगी तलवार पर पड़ी जिस पर खून लगा था। वह डरकर चीख पड़ी। राजकुमार की नींद भी खुल गयी। उसकी नजर भी मंत्री-पुत्र की तलवार पर पड़ी। उसने क्रोधित हो तलवार निकाली और पूछा, ‘‘...बताओ, तुमने तलवार क्यों निकाली है? ...और तुम्हारी तलवार पर यह किसका खून लगा है ? जल्दी  बताओ!  ’’
‘‘...मित्र, तुम्हें अगर सारी बात बताऊंगा तो पत्थर का हो जाऊंगा ...इसलिए तुम मुझसे कुछ न पूछो! ’’ उसने बताया।
‘‘ अब तुम चालबाजी पर उतर आये! सच-सच बता दो नही ंतो अभी तुम्हारे दो टुकड़े कर दूंगा! ’’
विवश होकर मंत्री-पुत्र ने तोता-मैना के बीच हुई बातें बतानी शुरू की। जैसे ही बात पूरी हुई वह पत्थर का हो गया। राजकुमार अपनी जिद पर पछतावा करने लगा। उसे अपने सच्चे मित्र की मित्रता पर संदेह करने का गहरा अफसोस था। उसके पास अब अपने होने वाले पुत्र का इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई चारा न था। नौ महीने पश्चात् राजकुमारी ने पुत्र को जन्म दिया। राजकुमार ने मित्र की मूर्ति के आगे नवजात पुत्र की बलि दे दी। मूर्ति जीवित हो उठी। दोनों मित्र गले मिले। मंत्री-पुत्र ने अपनी कानी उंगली को काटकर टपकता खून बच्चे की नाक में डाला। बच्चा जीवित हो गया। तश्चात् राजा ने एक वृहद भोज का आयोजन किया। तोता-मैना भी सामने एक पेड़ पर बैठे यह सब देख रहे थे। मैना बोली, ‘‘...तोता राम, दोस्ती हो तो ऐसी! राजकुमार और मंत्री-पुत्र के जैसी जिन्होंने एक-दूसरे के लिए अपनी और अपने नवजात शिशु की जान की परवाह नहीं की! ’’
‘‘हां, मैना रानी! तुम ठीक कहती हो! ’’ तोते ने सहमति जतायी।   



दो लघुकथाएं                           आकार
     जोगी ने जैसे ही ससुराल में कदम रखा, एक शोर-सा उठा ‘‘ जीजा जी आ गए, जीजा जी आ गए !’’ सास पाहुन का चेहरा निरखने लगी। कुछ कमजोर से दिख तो रहें हैं पर कोई बात नही ससुराल का रुखा-सूखा महीना भर खाते हैं तो शरीर में मांस दिखाई पड़ने लगता है। साल में एक बार तो महीने भर की छुट्टी लेकर आ ही जाते हैं। सास पाहुन के लिए जी-जीन से चौके में रम गई। साले-साली जोगी को घेर कर बैठ गये। जोगी ने एक बार बोलना षुरू किया तो बोलता ही चला गया। उसके और उसके मालिक की बातें जो खत्म होने का नाम ही न लेती। हर बार वही बातें वही लोग। सुनने वाले भी वही और उनका सुनने का चाव भी वही। ‘‘ मेरे मालिक का घर इतना बड़ा है कि इस गांव के सभी लोग उसमे आसानी से रह सकते हैं। खाने का टेबुल तो इतना बड़ा है कि पूछो मत। और चौका तो इस कमरे से दुगुना बड़ा है। खाने का ऐसा-ऐसा आइटम बनता है कि उसकी सुगंध से ही पेट भर जाता है।’’
       तभी साली ने बीच में टोका, ‘‘ जीजा जी, सब कुछ तो इतना बड़ा-बड़ा है उनका दिल भी इतना ही बड़ा है क्या ?’’
       जोगी ने अपने दोनों हाथ फैला कर कहा,‘‘ इतना बड़ा!’’ 
लेकिन यह कोई नही सुन सका कि जोगी के मन ने कहा,‘‘ नही, दिल तो उतना ही बड़ा है जितना कि सचमुच में होता है।’’
                                          चाहत
       कन्या ने मानव को नींद से जगाने का प्रयास किया। जब अधनींदी अंाखों से उसने कन्या की आंखों में झांका तो उसे पीड़ा की झलक दिखी। उसकी अंाखों की नींद उड़ गई। झट से उठ बैठा और सहारा देते हुए उसे बांहों में समेट लिया। ‘क्या हुआ, बहुत दर्द हो रहा है?’ मानव की आवाज में भी पीड़ा थी।
‘मां को बुला दो, जल्दी से।’ किसी तरह कन्या ने दर्द पर काबू पाया।
     मानव झट से सासू मां के कमरे की ओर दौड़ा। कन्या को जल्दी से गाड़ी में बिठाया गया। गाड़ी अस्पताल की ओर भाग रही थी। मां की गोद में कन्या दर्द से छटपटा रही थी। मां दिलासा दिए जा रही थी। ‘मां, अब मैं नहीं बचूंगी। दर्द से मैं मर जाऊंगी।’ कन्या ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।  
‘ बेटी, सब दर्द खुषी में बदल जायेगा, जब तुम्हारी गोद में एक प्यारा-सा बेटा आ जायेगा।’ मां के स्वर में आनेवाली खुषी की झलक थी।
‘ मां, अब भी तुम ऐसा कह रही हो?’ बेतरह दर्द के बावजूद कन्या के स्वर में मां की इस चाहत के प्रति ढ़ेर सारा आश्‍चर्य भरा था।
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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