श्याम बिहारी श्यामल की ताज़ा ग़ज़लें
II एक II
कहीं और कली कोई खिलती नहीं मिली
दूरबीनें थक गईं दूसरी धरती नहीं मिली
लाखों साल से दिलों को धड़का रहा था
उस चांद की नाड़ी चलती नहीं मिली
जैसा सोचा वैसा ही सूर्ख़ निकला मंगल
लेकिन हवा कोई वहां बहती नहीं मिली
बेहिसाब बड़ा है बेशक ओर-छोर नहीं
उस आसमां की अपनी हस्ती नहीं मिली
जाने कब होगी पूरी बेतहाशा यह तलाश
अभी तक तो हवा में बस्ती नहीं मिली
श्यामल आसपास यह नजारा है कैसा
किसी आंख में ज़मीं बलती नहीं मिली
II दो II
बेमिसाल निशानी है दाम न कर
ताजमहल यह मेरे नाम न कर
ख़ाली हो जाए यह जरूरी नहीं
पैमाना-ए-सहबा तमाम न कर
मुद्दतों बाद सुब्ह नसीब हुई है
जिद न कर इसे शाम न कर
दर्द ओढ़े सोया यहां कोई गज़ीदा
नींद टूट जाए, ऐसा काम न कर
गुमश्ता गुमनाम गुमराह है वह
आशिक न कह उसे बदनाम न कर
ख़्वाब ख़ुश्क नहीं ख़्वाहिशें ख़ालिस
श्यामल अक़बर कहां सलाम न कर
II तीन II
II चार II
गज़ब मुलायमियत है
II पांच II
श्यामल सजल कहानी पलामू
II छह II
झूठ का कारोबार न कर, बेचैनी में न खो
सच से सराेकार बढ़ा, खूब आराम से सो
मन के हाहाकार को मुस्कान से न ढंक
बाहर उसको आ जाने दे भीतर में है जो
आंखों की निर्जलता से नहीं कोई फर्क
रूह को खुद निचोड़ दे खून के आंसू रो
कौन रौंद रहा हल से, इससे क्या मतलब
उधड़ते अपने सीने में शब्द बारूदी बो
क्रिया की प्रतिक्रिया या शोध का प्रतिशोध
बाकी न कोई हिसाब रहे, सौगंध ऐसी लो
हौले-से हाथ बढ़ाकर परबत को उठा
समंदर के मुहाने तक कांधे पर ढो
शातिरों ने कितनी शातिर चाल ईजाद की
पास से गुजर रहे बिन देखे श्यामल को
0000
II एक II
कहीं और कली कोई खिलती नहीं मिली
दूरबीनें थक गईं दूसरी धरती नहीं मिली
लाखों साल से दिलों को धड़का रहा था
उस चांद की नाड़ी चलती नहीं मिली
जैसा सोचा वैसा ही सूर्ख़ निकला मंगल
लेकिन हवा कोई वहां बहती नहीं मिली
बेहिसाब बड़ा है बेशक ओर-छोर नहीं
उस आसमां की अपनी हस्ती नहीं मिली
जाने कब होगी पूरी बेतहाशा यह तलाश
अभी तक तो हवा में बस्ती नहीं मिली
श्यामल आसपास यह नजारा है कैसा
किसी आंख में ज़मीं बलती नहीं मिली
II दो II
बेमिसाल निशानी है दाम न कर
ताजमहल यह मेरे नाम न कर
ख़ाली हो जाए यह जरूरी नहीं
पैमाना-ए-सहबा तमाम न कर
मुद्दतों बाद सुब्ह नसीब हुई है
जिद न कर इसे शाम न कर
दर्द ओढ़े सोया यहां कोई गज़ीदा
नींद टूट जाए, ऐसा काम न कर
गुमश्ता गुमनाम गुमराह है वह
आशिक न कह उसे बदनाम न कर
ख़्वाब ख़ुश्क नहीं ख़्वाहिशें ख़ालिस
श्यामल अक़बर कहां सलाम न कर
II तीन II
रोशनी यह कैसी मुकाबिल यहाँ
पलकें उठाना भी मुश्किल यहाँ
पलकें उठाना भी मुश्किल यहाँ
ज़मीं पर कभी-कभी नमूदार होते
हलफ़नामे में उनके सारा जहाँ
हलफ़नामे में उनके सारा जहाँ
ताके तो सुब्ह आंखें मूंदते ही शब
ज़माने में मसीहा ऐसा और कहाँ
ज़माने में मसीहा ऐसा और कहाँ
देखते ही सिहर उठा ताज़महल
कैसा आया है नया शाहजहां
कैसा आया है नया शाहजहां
श्यामल चुप रहना मुमकिन अब कहां
खिंचती ही जा रही काली रात जवां
खिंचती ही जा रही काली रात जवां
II चार II
हर सांस कैफियत है
मिट्टी ही हैसियत है
मिट्टी ही हैसियत है
चुप्पी तो बयान है
जब शोर सियासत है
जब शोर सियासत है
यह सुब्ह इन्कलाब है
वह रात रियासत है
वह रात रियासत है
जबानों की दुनिया में
लफ़्ज मिल्कियत है
आग को छू ले श्यामल लफ़्ज मिल्कियत है
गज़ब मुलायमियत है
II पांच II
महुए की डाली यह पलामू
पलाश की लाली है पलामू
पलाश की लाली है पलामू
लाह की गज़ब ललौंही दुनिया
कोयल-जल की प्याली पलामू
कोयल-जल की प्याली पलामू
कनहर राग दामोदर की टेर
अमृत जैसा पानी पलामू
अमृत जैसा पानी पलामू
भूमि नीलांबर पीतांबर की
प्यार की राजधानी पलामू
प्यार की राजधानी पलामू
अदब से पेश आ ए वक्त यहाँ
मेदिनी की मथानी यह पलामू
मेदिनी की मथानी यह पलामू
महाप्रभु का जो वृंदावन कभी
फ़िर बने चैतन्य-बानी पलामू
फ़िर बने चैतन्य-बानी पलामू
खत्म हो चला धपेलों का खेल
जगा रहा नई जवानी पलामू
हवा हो अब पनसोखों का झुंड जगा रहा नई जवानी पलामू
श्यामल सजल कहानी पलामू
II छह II
झूठ का कारोबार न कर, बेचैनी में न खो
सच से सराेकार बढ़ा, खूब आराम से सो
मन के हाहाकार को मुस्कान से न ढंक
बाहर उसको आ जाने दे भीतर में है जो
आंखों की निर्जलता से नहीं कोई फर्क
रूह को खुद निचोड़ दे खून के आंसू रो
कौन रौंद रहा हल से, इससे क्या मतलब
उधड़ते अपने सीने में शब्द बारूदी बो
क्रिया की प्रतिक्रिया या शोध का प्रतिशोध
बाकी न कोई हिसाब रहे, सौगंध ऐसी लो
हौले-से हाथ बढ़ाकर परबत को उठा
समंदर के मुहाने तक कांधे पर ढो
शातिरों ने कितनी शातिर चाल ईजाद की
पास से गुजर रहे बिन देखे श्यामल को
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श्याम बिहारी श्यामल
जन्म : 20 जनवरी 1965, पलामू के डाल्टनगंज (झारखंड) में । करीब तीन दशक से लेखन और पत्रकारिता। पहली किताब 'लघुकथाएं अंजुरी भर' ( कथाकार सत्यनारायण नाटे के साथ साझा संग्रह) 1984 में छपी। 1998 में प्रकाशित उपन्यास 'धपेल' ( पलामू के अकाल की गाथा, राजकमल प्रकाशन) और 2001 में प्रकाशित 'अग्निपुरुष' (भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का आख्यान, राजकमल पेपरबैक्स) चर्चित। 1998 में ही कविता-पुस्तिका 'प्रेम के अकाल में' छपी। लंबे अंतराल के बाद 2013 में कहानी संग्रह 'चना चबेना गंग जल' (ज्योतिपर्व प्रकाशन) से प्रकाशित। दशक भर के श्रम से तैयार नया उपन्यास 'कंथा' ( 'नवनीत' में धारावाहिक प्रकाशित, महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित) प्रकाश्य।
संप्रति : मुख्य उप संपादक, दैनिक जागरण, वाराणसी (उप्र)
संपर्क नंबर : 09450955978, ई मेल आईडी : shyambiharishyamal1965@gmail.com
जन्म : 20 जनवरी 1965, पलामू के डाल्टनगंज (झारखंड) में । करीब तीन दशक से लेखन और पत्रकारिता। पहली किताब 'लघुकथाएं अंजुरी भर' ( कथाकार सत्यनारायण नाटे के साथ साझा संग्रह) 1984 में छपी। 1998 में प्रकाशित उपन्यास 'धपेल' ( पलामू के अकाल की गाथा, राजकमल प्रकाशन) और 2001 में प्रकाशित 'अग्निपुरुष' (भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का आख्यान, राजकमल पेपरबैक्स) चर्चित। 1998 में ही कविता-पुस्तिका 'प्रेम के अकाल में' छपी। लंबे अंतराल के बाद 2013 में कहानी संग्रह 'चना चबेना गंग जल' (ज्योतिपर्व प्रकाशन) से प्रकाशित। दशक भर के श्रम से तैयार नया उपन्यास 'कंथा' ( 'नवनीत' में धारावाहिक प्रकाशित, महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित) प्रकाश्य।
संप्रति : मुख्य उप संपादक, दैनिक जागरण, वाराणसी (उप्र)
संपर्क नंबर : 09450955978, ई मेल आईडी : shyambiharishyamal1965@gmail.com
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-08-2017) को "पुनः नया अध्याय" (चर्चा अंक 2707) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'