ग़ज़ल
दहशतों ने पास रह निडर कर दिया
गजब किया बवंडरों ने घर भर दिया
दर्द ने दिया साथ कि जगाए रखा
छांव धर झाइयों ने घर कर दिया
कहां न थी सीख-ओ-सबक़ की गठरी
हमीं ने खुद को बेखबर कर दिया
गुल निकले थे हाथों में पत्थर लेकर
हवाओं ने हंस कर बेअसर कर दिया
श्यामल सफ़र ने किया था बेघर
मंजि़ल ने अब बेसफ़र कर दिया
श्याम बिहारी श्यामल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2018) को "हरेला उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार" (चर्चा अंक-3035) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'