महान साहित्‍यकार श्रीलाल शुक्‍ल


हिन्‍दी के महान साहित्‍यकार श्रीलाल शुक्‍ल


स्‍नेहर्षि श्रीलाल शुक्‍ल 


श्‍यामबिहारी श्‍यामल

कवि-सम्‍पादक भारत यायावर
         दिल्ली में 1999 का ‘व्या‍स सम्मान’ ग्रहण करने से कुछ देर पहले इण्डिया गेट के सामने श्रद्धेय श्रीलाल शुक्ल ने हमें जो थोड़ा-सा संग-सानिध्य दिया था, जिसका स्मरण मैंने बीते 29 अक्टूबर 2011 को उन्हें श्रदांजलि देते हुए किया था, इसके बारे में यहां एक जानकारी जोड़ना आवश्यक है। दरअसल, उस मुलाकात में ''रेणु रचनावली' के सम्पादक भारत यायावर के साथ अकेले मैं ही नहीं था बल्कि प्रसिद्ध उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल भी थे। 

           श्रीलाल जी के निधन के बाद शनिवार को भाववि‍ह्वलता ने मेरी स्मृ‍ति को पता नहीं कैसे झकझोर डाला कि मैं महज दशक भर पहले की उस मुलाकात का भाव-चित्र नहीं उकेर सका। कल ( सोमवार, 31 अक्टूबर 2011 ) देरशाम झारखंड के हजारीबाग से भारत यायावर जी ने दूरभाष पर बतियाते हुए अपनी ताजा दिल्ली-यात्रा के बारे में बताया और जब मोरवाल जी व उनसे अपनी नई मुलाकात-बात का जिक्र किया तो वह पुराना प्रसंग भी मन में हरा हो गया। 

कथाकार भगवानदास मोरवाल
         हां, वह त्वचा सहलाती मुलायम धूप की सोंधी-सी दोपहरी थी जब हम तीनों-- यानि भारत जी, मोरवाल जी और मैं-- इण्डिया गेट के निकट घास पर जमे या जमने जा रहे थे। इसी बीच श्रीलाल जी की गाड़ी आकर रुकी थी। वह भारत जी को देखकर आये थे, पुकारते हुए। इसके बाद उन्हीं के साथ व्यास सम्मान समारोह-स्थ़ल तक जाना हुआ था। यानि भारतीय पुरातत्व संग्रहालय के प्रशाल में। 

         निश्चचय ही यह अब एक अनमोल स्मृति है। किंतु 01 नवम्बर 2011 फोन पर बात करते हुए भाई मोरवाल ने जो एक बात बताई वह और अधिक अभिभूत कर देने वाली है। यह साबित करने वाली भी कि अपने अनुजों से स्नेह करने के मामले में श्रीलाल जी सचमुच बेमिसाल थे। सचमुच असाधारण व्‍यक्तित्‍व-व्‍यवहार के ज्‍येष्‍ठ रचनाकार। ' स्‍नेहर्षि ' ही कहना चाहिए उन्‍हें। मोरवाल जी ने फोन पर जो बताया वह यहां उल्‍लेखनीय है :

        यह संदर्भ है 2007 के कथाक्रम सम्‍मान-समारोह का। श्रीलाल जी इसकी संयोजन-समिति में थे। मोरवाल जी अपने नाम घोषित यह सम्मान ग्रहण करने लखनऊ आये थे। मंच पर आते ही श्रीलाल जी ने बात कुछ यों शुरू की, ‘’ ...युवा कथाकार भगवानदास मोरवाल से आज दूसरी बार मिल रहा हूं। पहली बार इनसे दिल्ली में कवि-संपादक भारत यायावर और युवा कथाकार श्यामबिहारी श्यामल के साथ उस दिन मिला था जिस दिन मुझे व्यास सम्मान मिलने वाला था। भारत जी ने मेरा परिचय दोनों युवा कथाकारों से कराया था। हमलोगों ने समारोह से पहले इण्डिया गेट के पास एक साथ आइसक्रीम खायी थी.... ‘’ 

         मेरी स्मृति-विपन्नता का नमूना तो यहीं तीन दिन पहले मोरवाल जी का नाम छूट जाने के रूप में सबके सामने आ चुका है जबकि इसके समानान्तर हमसे दुगुनी आयु के रहे श्रीलाल जी की यादाश्त का उदाहरण तो एकदम प्रकट कि 2007 में उन्होंने वर्षों पहले की हमारी मुलाकात का प्रसंग उन्‍हें याद रहा। उनकी अनोखी उदारता का प्रमाण यह कि इस मुलाकात का प्रसंग उन्‍होने हमारे नामोल्लेख सहित मंच से आम किया। आज जबकि वह हमारे बीच नहीं है, मन में एक श्रद्धासिक्‍त जिज्ञासा बार-बार  कुलबुला रही है-- यह उनका अनमोल स्मृति-सम्बल था या अनूठा स्नेह-बल... श्रद्धा-स्नेह-स्रोतस्विनी उनकी स्मृ्ति को प्रणाम...

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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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2 comments:

  1. श्रीलाल शुक्ल को याद करना एक महान व्यंग्य परम्परा को याद करना है |आभार

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  2. बि‍ल्‍कुल सही बन्‍धुवर तुषार जी... सद्भावनाओं के लि‍ए आभार...

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