चमक रहा महाकवि का अनन्य आंगन
दिव्य यह कामायनी का भव्य प्रांगण
श्यामबिहारी श्यामल
काशी के सरायगोवर्द्धन में विख्यात प्रसाद-प्रांगण में 25 नवंबर 2013 की शाम कुछ खास रही। हमारी भाषा में तुलसीदास के बाद सबसे बड़े कवि जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री दिव्या के पावन परिणय का अवसर। वह महाकवि के तीसरे पौत्र आनंद शंकर प्रसाद की पुत्री हैं। प्ले ग्राउंड जैसा विशाल परिसर चमचमाते झालरों और रंग-बिरंगे पंडालों से शोभायमान। शब्द के संसार से नाता रखने वालों से लेकर बनारस के पुराने और मौलिक परंपरावाहक घरानों के ख्यात-विख्यात खास लोगों तक के आने का क्रम शाम से जो शुरू हुआ सो देर रात तक जारी रहा। लोगों की अगवानी और अतिशय विनम्रता के साथ स्वागत सत्कार में जुटे हैं महाकवि के बड़े पौत्र किरणशंकर प्रसाद से लेकर सबसे छोटे महाशंकर प्रसाद समेत सभी पांच पौत्र और उनके अन्य परिवारीजन।
प्रसंगवश उल्लेखनीय यह कि रत्नशंकर प्रसाद महाकवि के इकलौते पुत्र रहे जिनका 08 जनवरी 2006 को महाप्रयाण हो चुका है। उनके छह पुत्रों में सबसे बड़े अरुण शंकर प्रसाद भ्ाी अब इस दुनिया में नहीं हैं। दूसरे किरणशंकर प्रसाद ही अब बड़े की भूमिका में हैं। तीसरे हैं आनंद शंकर प्रसाद। चौथे हैं इंदुशंकर प्रसाद, पांचवें प्रभाशंकर प्रसाद और छठे महाशंकर प्रसाद।
काशी के झारखंडी के यहां झारखंड से आई बारात :: महाकवि जयशंकर प्रसाद के बचपन का पुकारू नाम झारखंडी ही रहा। संयोग यह कि काशी के इस झारखंडी के यहां 25 नवंबर 2013 को बारात भी आई तो झारखंड के ही रांची से।
महाकवि के झारखंडी नामकरण की कथा यह कि पिता सुंघनी साहू देवी प्रसाद ने प्रारंभ में देवघर के बाबा वैद्यनाथधाम में जाकर पुत्र-कामना की थी। इसी के बाद महाकवि का जन्म हुआ। बाबा वैद्यनाथ को झारखंडी महादेव कहा जाता है लिहाजा शिशु का प्रथम नामकरण झारखंडी हुआ। घर में अंतिम क्षण तक मातृसमान भाभी लखरानी देवी महाकवि को झारखंडी कहकर ही पुकारती रहीं। कारुणिक संयोग यह कि महाकवि को गोद में खिला चुकीं भाभी लखरानी उनके अंतिम क्षणों में भी सामने आंसू बहा रही थीं। स्वाभाविक रूप से महाकवि के जीवन के ऐसे सारे अरुण-करुण दृश्य मेरे आगामी उपन्यास ' कंथा' ( 'नवनीत' में 28 अंशों में धारावाहिक प्रकाशित, अब पुस्तक रूप में आने की बारी ) में दर्ज हुए हैं।
'कामायनी' का जन्म-स्थल, 'कंथा' की प्राण-भूमि :::: प्रसाद-प्रांगण यदि हमारी भाषा के महान महाकाव्य 'कामायनी' का जन्म-स्थल या रचना-स्थल है तो इसके रचयिता महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन-युग को दृश्यमान करने वाले मेरे आगामी उपन्यास 'कंथा' की तो यह प्राण-भूमि ही।
आह्लादकारी अवसर :: महाकवि की प्रपौत्री के परिणय-अवसर पर प्रसाद-प्रांगण में उपस्थित होने का अवसर इन पंक्तियों के लेखक के लिए सचमुच खास। उनके जीवन-युग पर आधारित उपन्यास 'कंथा' के सृजन के दौरान दशक भर तक इस परिसर में आने-जमने और इसके चप्पे-चप्पे काे प्राण-वायु की तरह जज्ब करने का अपना अलग ही प्रदीर्घ अनुभव रहा है। इस बीच कुछ साल पहले किरणशंकर जी के कनिष्ठ पुत्र अंशुशंकर प्रसाद की शादी में भी विशेष तरजीह के साथ शामिल होने का अवसर यादगार बना किंतु समारोह का वह परिसर प्रसाद-प्रांगण नहीं रहा। इस दृष्टि से यह आयोजन खास आह्लादकारी।
सविता जी की चमक, विशाल-निरंजन की क्लिक पर क्लिक :: कथाकार सविता सिंह की महाकवि की कनिष्ठ पौत्रवधू शशिप्रभा के साथ सखियारी है। शशि जी महाकवि के कनिष्ठ पौत्र व मेरे मित्र महाशंकर प्रसाद की धर्मपत्नी हैं। सविता जी घर के भीतर कन्या की माता और चाचियों के साथ चमक रही हैं, मैं बाहर आगंतुकों के बीच। पुत्रद्वय विशाल और निरंजन कभी भीतर तो कभी बाहर क्लिक पर क्लिक चमकाने में मशगूल।
दृश्यबद्ध कुछ अनमोल क्षण
बाएं से काशी के रचनाकार जितेंद्रनाथ मिश्र (संपादक : सोच-विचार), विख्यात व्यंग्यकार धर्मशील चतुर्वेदी, मैं और साथ में अन्य साहित्यानुरागी.. |
बारात आने से कुछ ही देर पहले बाएं महाकवि के पौत्र आनंद शंकर और दाएं उनके अग्रज किरण शंकर जी.. |
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