बनारस-मय नामवर , नामवर-मय बनारस
श्याम बिहारी श्यामल
एनडीटीवी के ताजे इंटरव्यू में
श्रद्धेय नामवर जी ने अपने बनारस को जिस अंदाज़ में याद किया है और यहां एक बार
आने की इच्छा जताते हुए स्वयं ही इसके पूरी हो पाने पर जिस तरह संदेह
जताया है, यह पूरा संदर्भ मर्माहत कर देने वाला है..
देह आयु-दमन से जितनी
ही निर्बल-सी दिखी, एक बार बनारस आने की उनकी इच्छा उसके विपरीत उतनी की
बलवती.. उनके निकट अक्सर आने-जाने का अवसर पाने वालों के लिए भी उनका यह
रूप सर्वथा अनदेखा और बेचैन करने वाला है.. लेकिन समय और नियति
से कौन लोहा ले..
बनारस को उनके मुंह से 'बाबा विश्वनाथ की नगरिया' के
रूप में संज्ञायित सुनना अलग ढंग की अनुभूति जगा गया.. संसार छानने और
बहुत कुछ पाने के बाद जैसे महानायक को अब अपने 'घर' लौटने की जल्दी हो.. जग जीतने के बाद भी मन के लिए अपने 'घर' की कैसी विरल अहमियत है, यह महसूस किया जा रहा है।
बनारस के लिए भी नामवर खासमखास हैं। उधर,
लोलार्क कुंड-अस्सी से लेकर जगतगंज, यूपी कॉलेज-शिवपुर और इधर, बीएचयू से
लेकर रथ-यात्रा-मंड़ुआडीह तक। बनारस के चप्पे-चप्पे में उनकी सक्रियता के
कण अब भी चमक रहे हैं। उन्हें जानने वालों के लिए बनारस नामवर-मय है और
दुनिया ने एनडीटीवी पर स्वयं देखा-सुना कि कैसे दिल्ली में भी नामवर
बनारस-मय हैं..
काशी नगरी जिसने अपनी गोद में तुलसी-कबीर-रैदास से लेकर भारतेंदु-प्रेमचंद-प्रसाद-रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद-नज़ीर बनारसी तक की कोमल छवियां सहेज रखी है, बेशक उसके हृदय-मन में अपने नामवर के लिए भी वैसी ही स्नेहिल ममता छलक रही है.. वह आज भले दिल्ली में बैठे हों, यह नगर उन्हें हर क्षण अपने हृदय में महसूस कर रहा है, ठीक वैसे ही जैसे हमेशा तुलसी-कबीर से लेकर हजारी प्रसाद-नज़ीर बनारसी को महसूस करता है..
काशी नगरी जिसने अपनी गोद में तुलसी-कबीर-रैदास से लेकर भारतेंदु-प्रेमचंद-प्रसाद-रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद-नज़ीर बनारसी तक की कोमल छवियां सहेज रखी है, बेशक उसके हृदय-मन में अपने नामवर के लिए भी वैसी ही स्नेहिल ममता छलक रही है.. वह आज भले दिल्ली में बैठे हों, यह नगर उन्हें हर क्षण अपने हृदय में महसूस कर रहा है, ठीक वैसे ही जैसे हमेशा तुलसी-कबीर से लेकर हजारी प्रसाद-नज़ीर बनारसी को महसूस करता है..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2017) को "घर दिलों में बनाओ" " (चर्चा अंक-2964) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Kashi ki apni mahima h.jo kashi ka ho gaya kashi us ko aur wo kashi ko nhi bhool sakta.. Kashi kabhaun n chooddiye iske bade naam... Marne per Vaikunth milm aur Rahne pe langda aam ..
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