डा. कुमार वि‍मल का स्‍मरण



डा. कुमार वि‍मल हमेशा रहेंगे हमारे साथ

  श्रद्धांजलि‍ 0  श्‍याम बि‍हारी श्‍यामल 
        
डा. कुमार वि‍मल का जाना हि‍न्‍दी भाषा-साहि‍त्‍य जगत की वास्‍तवि‍क अर्थों में अपूर्णीय क्षति‍ है। वह हमारे शब्‍द-संसार में ऐसे अनोखे व्‍यक्‍ति‍त्‍व रहे जि‍नके बारे में यह सूचना कि‍सी को चकि‍त कर सकती है कि‍ उनके अपने पुस्‍तकालय में उपलब्‍ध पुस्‍तकों की संख्‍या छह अंकों में है। लाख से भी ज्‍यादा कि‍ताबों का रोजाना व्‍यवहार वाला खजाना। इससे उनकी घनघोर अध्‍ययन-वृति‍ का अंदाजा लगाया जा सकता है। 
         बड़े-बड़े पदों पर रहे डा. वि‍मल ने अपने प्रभाव-भंवर में कभी स्‍वयं की लेखक-वृति‍ को फंसने-बूड़ने नहीं दि‍या। यह बड़ी बात है। हि‍न्‍दी आलोचना के क्षेत्र में सौन्‍दर्य शास्‍त्र पर कि‍या उनका काम साहि‍त्‍य की मुख्‍य धारा में उन्‍हें हमेशा उपस्‍थि‍त रखेगा, इसमें दो राय नहीं। इसके साथ ही उन्‍हें जानने-मानने वालों को यह मलाल अवश्‍य सदा रहेगा कि‍ उनके जैसे व्‍यक्‍ति‍त्‍व से हमारे साहि‍त्‍य को जि‍तना मि‍लना चाहि‍ए था, उसका बहुत कम ही अंश मि‍ल सका। 
        दुनि‍या भर में लि‍खे  जा रहे साहि‍त्‍य पर त्‍वरि‍त दृष्‍टि‍पात करने का लोभ संवरण न कर पाने वाले डा. वि‍मल के बारे कहा जाता है कि‍  शायद ही कोई दि‍न ऐसा बीत पाता था जब डाकि‍या उनके घर कोई न कोई पुस्‍तक का मंगाया हुआ पैकेट न दे जाता। ऐसे पैकेट कई भाषा की मौलि‍क कृति‍यों के होते। खूब पढ़ना, मंथन करना और रचना का आस्‍वादन उनका गति‍मान स्‍वभाव था लेकि‍न इसके बाद स्‍वयं को व्‍यक्‍त करने के लि‍ए अपेक्षि‍त समय वह बड़े पदों की जि‍म्‍मेवारी के जाल से नि‍काल नहीं पाते थे। काश, ऐसा महान रचना-आस्‍वादक बड़े पदों से दूर रहा होता। 
      अफसोस कि‍ पि‍छले दि‍नों पटना-यात्रा के दौरान इच्‍छा रखते हुए भी उनके यहां जाने का अवसर नहीं मि‍ल सका। फेसबुक-साथी रचनाकार अरुण नारायण जी के साथ उनके यहां जाना था किंतु उस दि‍न संयोग कुछ वि‍परीत हो गया। अरुण जी कि‍सी आकस्‍मि‍क परेशानी के चलते कहीं फंसे रह गये। मैं इंतजार करता रह गया।  ....डा. वि‍मल से यह न मि‍ल पाना कभी नहीं बि‍सरेगा ...उन्‍हें भावभीनी श्रद्धांजलि‍... 


         डा. कुमार वि‍मल के बारे में कल ( 01 दि‍सम्‍बर 2011 ) शाम दूरभाष पर बात करते हुए 'रेणु रचनावली' के सम्‍पादक भारत यायावर ने एक उल्‍लेखनीय जानकारी दी। 'आजकल' के ताजा अंक में डा. वि‍मल का महाकवि‍ आरसी प्रसाद सि‍ह पर आलेख है और इसे प्रेषि‍त करते हुए उन्‍होंने ( डा.वि‍मल ) अपनी अंति‍म रचना बताया था। नि‍श्‍चय ही इससे उनके अपनी रोगग्रस्‍तता से नि‍राश हो चुके होने का भी संकेत मि‍लता है। ...'आजकल' का यह अंक आरसी बाबू और व्‍यंग्‍य कथा-सम्राट राधाकृष्‍ण पर केन्‍द्रि‍त है।


डा . कुमार वि‍मल : संक्षि‍प्‍त वि‍वरण

जन्मः- 12 अक्टूबर, 1931 ( बि‍हार के लखीसराय के एक गांव में )
साहित्यिक जीवनः- साहित्यिक जीवन का प्रारंभ काव्य रचना से, उसके बाद आलोचना में प्रवृति रम गई। 1945 से विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलोचनात्मक लेख आदि प्रकाषित हो रहे हैं। इनकी कई कविताएं अंगे्रजी, चेक, तेलगु, कष्मीरी गुजराती, उर्दू, बंगला और मराठी में अनुदित।
अध्यापनः-  मगध व पटना  विष्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक।   बाद में निदेषक बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना । संस्थापक आद्य सचिव, साहित्यकार कलाकार कल्याण कोष परिषद्, पटना नांलदा मुक्त विश्‍ववि‍द्यालय में कुलपति
अध्यक्ष बिहार लोक सेवा आयोग
बिहार विश्वविद्यालय कुलपति बोर्ड
हिन्दी प्रगति समिति, राजभाषा बिहार
बिहार इंटरमीडियएट शिक्षा परिषद्
बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग

सदस्य
ज्ञानपीठ पुरस्कार से संबंधित हिन्दी समिति
बिहार सरकार उच्च स्तरीय पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष
साहित्य अकादमी, दिल्ली, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर और भारत सरकार के कई मंत्रालयों की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके हैं।

सम्मान
कई आलोचनात्मक कृतियां, पुरस्कार-योजना समिति (उत्तर प्रदेश) बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना,राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह विशेष साहित्यकार सम्मान, हरजीमल डालमिया पुरस्कार दिल्ली, सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार, आगरा तथा बिहार सरकार का डा. राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान
प्रकाशनः-
अब तक लगभग 40 पुस्तकों का प्रकाशन
महत्वपूर्ण प्रकाशनः-
आलोचना में ‘‘मूल्य और मीमांसा‘‘, ‘‘महादेवी वर्मा एक मूल्यांकन’’, ‘‘उत्तमा‘‘ ।
कविता में - ‘‘अंगार‘‘, ‘‘सागरमाथा‘‘।
संपादित ग्रंथ- गन्धवीथी  (सुमित्रा नंदन पंत की श्रेष्ठ प्रकृति कविताओं का विस्तृत भूमिका सहित संपादन संकलन), ‘‘अत्याधुनिक हिन्दी साहित्य‘‘ आदि।

                                                                        ( सूचनाएं : साभार गूगल )
Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

2 comments:

  1. डा.विमल के बारे कुछ महत्वपूर्ण बातो को साझा करने के लिए आपका आभार...यह सचमुच विस्मयकारी है कि चुपचाप काम करने वालो कि इस तरह उपेक्षा की जाती है...पूरे हिंदी समाज पर यह एक प्रतिकूल टिप्पड़ी की तरह है...विमल जी को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि..

    जवाब देंहटाएं
  2. रामजी भाई, निश्‍चय ही चिन्‍ताजनक है कि मौन साधकों को हमारे यहां अब अधिक अनदेखा किया जा रहा है...

    जवाब देंहटाएं