रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों में निश्चय ही ' सुहागिन का मन ' इंगित हुआ है। सिंदूर तिलकित भाल वाली वह आत्मा, जो वैधव्य देखने से बचने की हमेशा कामना करती है और किसी भी कीमत पर इससे सदा बचना चाहती है। यहां बात मुहावरों में है और बेशक पूरे संदर्भ में अपनी भाषा के लिए सदिच्छाएं ही सदिच्छाएं झलक भी रही हैं। कहीं से कोई कलुष-विकार या दुराव नहीं, लेकिन हम भी क्या करें किसी रुपक या मुहावरे में भी हमारा मन अपनी हिन्दी के लिए मरने जैसी खौफनाक क्रिया को स्वीकार करने को तैयार नहीं। यदि यह स्वीकार्य है कि ब्रह्मांड में पृथ्वी हमेशा अस्तित्वमान बनी रहेगी तो हमारे लिए यह भी कहीं से अविश्वसनीय नहीं कि हमारी हिन्दी सदा-सर्वदा फूलती-फलती और हरी-भरी जीवंत बनी रहेगी, अपने अक्ष पर अबाध गतिशील बनी हुई। फेसबुक पर कुमार मुकुल की ओर से प्रस्तुत रघुवीर सहाय की रचना में उक्त पंक्तियां देख सहज प्रतिक्रिया में लिखी कुछ ताजा पंक्तियां...
पृथ्वी है हमारी हिन्दी
..अग्रज रचनाकार से क्षमायाचना सहित--
कुछ केवाल
कुछ ढेलहिया
कहीं बलुआही
कहीं चिकट
कभी कुछ धूसर
कभी ऊसर
पथरीली भी
गीली भी
ढीली है
ढबढब है
सब है
असल में तो पृथ्वी है हमारी हिन्दी
लहलहाती रहेगी
हरियाई झूमती रहेगी
सदा-सदा घूमती रहेगी
-- श्याम बिहारी श्यामल
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फेसबुक पर हिन्दी दिवस ( 14 सितंबर 2012 ) पर कुमार मुकुल द्वारा प्रस्तुत हिन्दी के महत्वपूर्ण रचनाकार रघुवीर सहाय की कविताएं
हमारी हिंदी - हिंदी दिवस पर रघुवीर सहाय की दो कविताएं
by Kumar Mukul on Friday, September 14, 2012 at 2:35pm ·
हिन्दी
पुरस्कारों के नाम हिन्दी में हैं
हथियारों के अंग्रेज़ी में
युद्ध की भाषा अंग्रेज़ी है
विजय की हिन्दी
हमारी हिंदी
हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीबी है
बहुत बोलने वाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
गहने गढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ
वह मुटाती जाए
पसीने से गन्धाती जाए घर का माल मैके पहुँचाती जाए
पड़ोसिनों से जले
कचरा फेंकने को लेकर लड़े
घर से तो ख़ैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता
औरतों को जो चाहिए घर ही में है
एक महाभारत है एक रामायण है तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
एक खूसट महरिन है परपंच के लिए
एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किये जा सकें
एक गुचकुलिया-सा आँगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
बिस्तरों पर चीकट तकिए कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
फ़र्श पर ढंनगते गिलास
खूंटियों पर कुचैली चादरें जो कुएँ पर ले जाकर फींची जाएँगी
घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
सीलन भी और अंदर की कोठरी में पाँच सेर सोना भी
और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
और ज़मीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा
कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।
(1957)
अविस्मरणीय पोस्ट |आभार अग्रज जी
जवाब देंहटाएंआपकी सद्भावनाएं मेरे लिए अनमोल है बंधुवर तुषार जी..
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जवाब देंहटाएंsach Hindi hai ham vatan hai, hindostan hamara
bahut badiya prastuti ..AAbhar
सद्भावनाएं के लिए आभार कविता रावत जी..
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