ग़ज़ल 

जो बटोरा है सब खोना है 
इसी एक बात का रोना है

खेल अलग-अलग चला 
अब अंत एक-सा होना है  

कब्‍ज़ा बहुत लंबा-चौड़ा है 
साढ़े तीन हाथ में सोना है 

उस सोने को मिट्टी होना है 
इस मिट्टी में जो सोना है 

श्‍यामल बोआई जारी रख 
एक लम्‍हा भी नहीं खोना है

© श्‍याम बिहारी श्‍यामल

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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-06-2018) को "मन मत करो उदास" (चर्चा अंक-3013) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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