ग़ज़ल
श्याम बिहारी श्यामल
जल चांदनी में धुल रहा है
चांद नदी में घुल रहा है
सितारे अब आंखें मल रहे
मन तो सबका झूल रहा है
आकर देख लेता सूरज भी
कहां वह भटक-भूल रहा है
कुदरत का यह मंज़र नायाब
हर लम्हा नया खुल रहा है
श्यामल यह सन्नाटा ग़ज़ब
नज़्म-ए-गुल से तुल रहा है
About
Shyam Bihari Shyamal
Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-06-2018) को "मन को करो विरक्त" ( चर्चा अंक 3014) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी