यह मोहन निर्झर

भांति-भांति के जीव-निजीर्वों से भरी है यह आभाषी दुनिया। कौन कब कहां क्‍या शिगूफा या जहर उगलकर लीपने में जुट जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ...
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