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अंतरंगता :: वाराणसी के सरायगोवर्द्धन स्थित प्रसाद मंदिर में रविवार ( 11 सितम्बर 2011 ) को आनन्द शंकर प्रसाद के साथ श्यामबिहारी श्यामल। |
महाकवि प्रसाद
का घर-आंगन
जहां रचा गया हमारी भाषा का
महान कालजयी साहित्य
सरायगोवर्द्धन में यह परिसर कभी हिन्दी साहित्य का केन्द्र-बिन्दु ही तो रहा होगा जहां महाकवि जयशंकर प्रसाद से मिलने आते रहने वालों में अपने शहर ( काशी ) के आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और प्रेमचन्द से लेकर इलाहाबाद से आने वाले सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' समेत देश भर के रचनाकार और साहित्य-प्रेमियों के शामिल होने का इतिहास है। जहां कभी सदाबहार जमघट-बैठकियां गुलजार रहती होंगी वहीं रविवार ( 11 सितम्बर 2011 ) को हम दोनों ( साथ मे सविता सिंह ) जब देर शाम दाखिल हुए तो बड़ा-सा किंतु खाली पड़ा हुआ परिसर जगह-जगह रोशनी के छोटे-छोटे टुकड़े-चकते पकड़े जैसे भांय-भांय करता हमें प्राथमिक जिज्ञासा से ताकने लगा हो। बदरंग हो चला लोहे का बड़ा-सा ढनढनाता गेट। भीतर घुसते ही थोड़ी दूरी पर वह पुराना शिवाला टिमटिमाते बल्ब की रोशनी संभाले मुखातिब मिला जहां बैठकर महाकवि प्रसाद द्वारा महानतम कृति ''कामायनी'' के अंतिम छंद और आमुख लिखे जाने का प्रसंग उपलब्ध है। अद्भुत अनुभूति... हम उस स्थान पर हैं जहां ''राम चरित मानस'' के बाद हमारी भाषा का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य लिखा गया... आज यह 'प्रसाद मंदिर' के रूप में ज्ञात है। देखने में एक कितु निर्माण के हिसाब से आधा भवन पूर्वजों और शेष स्वयं प्रसाद का बनवाया हुआ। गेट से प्रवेश के बाद भवन का पुराना ही हिस्सा पहले। कम ऊंचाई का किंतु पारम्परिक घरानों की गरिमा से भरा पुष्ट-प्रदीर्घ चौखटों वाला नक्काशीदार दरवाजा। बरामदे मे
प्रवेश् करते ही बायें कमरे मे किरणशंकर प्रसाद, यानि महाकवि के पौत्र । अपने छह भाइयों ( अरुणशंकर प्रसाद, किरणशंकर प्रसाद, आनन्दशंकर प्रसाद, इन्दुशंकर प्रसाद, प्रभाशंकर प्रसाद और महाशंकर प्रसाद ) में दूसरे नंबर के भ्राता। कुछ देर उनसे चर्चा-बातें।सविता जी ऊपर चली गयी हैं जहां किरणशंकर जी की दोनो बहुएं उनका स्वागत कर रही हैं। कुछ देर बाद वह नीचे आने के बाद महाशंकर के आंगन में जाने का संकेत दे भीतर दूसरे हिस्से में चली गयीं। श्रीमती महाशंकर यानि शशिप्रभा से उनकी पहले से निकटता। बुलावा आने पर मैं भी भीतर।महाशंकर जी से कुछ देर बातें। हमलोग प्रसाद-कक्ष में भी। आनन्दशंकर वह स्थान इंगित कर रहे है, जहां 'कामायनी' का ज्यादातर लेखन हुआ है। सविता जी मोबाइल से समय-समय पर चित्र लेती चल रही हैं। अनेक घरेलू और दूसरे प्रसगों पर चर्चा-बातें जारी। रात के नौ से ऊप्ार, घर में बच्चों के होने का हमारा अहसास अब प्रबल। लौटते-लौटते दस बज चुके हैं। शाम बेहतर गुजरने का संतोष, इसके यादगार होने का भी अहसास।
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दुर्लभ स्थल :: वह स्थान जहां 'कामायनी' का अधिकांश लेखन सम्पन्न हुआ था। |
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विरल क्षण :: कामायनी-सृजन-स्थल पर कथाकार सविता सिंह। |
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संग-साथ :: वाराणसी के सरायगोवर्द्धन स्थित प्रसाद मंदिर में रविवार ( 11 सितम्बर 2011 ) को महाकवि के कनिष्ठ पौत्र महाशंकर प्रसाद के साथ श्यामबिहारी श्यामल। |
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भावपूर्ण :: महाशंकर प्रसाद का क्लोजअप |
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कई दिनों बाद भेंट :: वाराणसी के सरायगोवर्द्धन स्थित प्रसाद मंदिर में रविवार ( 11 सितम्बर 11 ) को महाकवि की कनिष्ठा पौत्रवधू शशिप्रभा (महाशंकर प्रसाद की पत्नी ) के साथ सविता सिंह। |
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मूल्यवान अपनापन :: किरण शंकर प्रसाद ( दायें ) और अचानक पहुंचे मित्र दीपक शर्मा के साथ श्यामबिहारी श्यामल। |
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महाकवि का साया-सुख :: वाराणसी के सरायगोवर्द्धन स्थित प्रसाद मंदिर में रविवार ( 11 सितम्बर 2011 ) को महाकवि जयशंकर प्रसाद के चित्र के निकट श्यामबिहारी श्यामल। |
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निकटता :: वाराणसी के सरायगोवर्द्धन स्थित प्रसाद मंदिर में रविवार ( 11 सितम्बर 2011 ) को महाकवि की पौत्रवधू शशिप्रभा के साथ सविता सिंह। |
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अद्भुत अनुभूति-लाभ :: वाराणसी के सरायगोवर्द्धन स्थित प्रसाद मंदिर के प्रसाद- कक्ष में रविवार ( 11 सितम्बर 2011 ) को श्यामबिहारी श्यामल। |
आपसे रश्क हो रहा है...बहुत सुन्दर पोस्ट..
जवाब देंहटाएंआभार मित्रवर रंगनाथ जी... आप बनारस आयें तो साथ-साथ चला जाये...
जवाब देंहटाएंभाई श्यामल जी आपका कार्य और यह पोस्ट बहुत ही सराहनीय है |बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआभार मित्रवर जयकृष्ण राय तुषार जी...
जवाब देंहटाएंश्याम बिहारी श्यामल जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंइस सगेदारी के लिए हार्दिक आभार विनीत जी..
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