गुल-ए-ज़ज़्ब नायाब, मौलवी कैसे खोजे मानी श्याम बिहारी श्यामल शिकस्त-ए-संगदिली का मंज़र अज़ब बनते देखा जानिब-ए-कांच पत्थर ...
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अप्रैल 2019
फिर वही दुर्योधन वही दुशासन अड़े
कैसे तेरे साथ कृष्ण हरदम नहीं श्याम बिहारी श्यामल सामने ज़ंग महाभारत से कम नहीं अफ़सोस साथ में केशव का दम नहीं फिर वही ...
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रंग कितने अंधेरे के भीतर श्याम बिहारी श्यामल ख्व़ाब देखता हमें, गीत गाता है मुझे ग़ज़ल इस फ़ज़ल पर शुक्रिया कहूं मैं तुझे ...
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ओ दुनिया को रुलाने वाले..
बेशक तुम शिकंजाकश रहे श्याम बिहारी श्यामल दु:ख तुम जितना ही हंस रहे दरहक़ीक़त उतना फंस रहे ओ दुनिया को रुलाने वाले ...
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हंसो हंसो हंसो जि़या ज़ानिबे अब दिल जाए
मुस्कान उड़ान भरे और आस्मां पर बिछ जाए श्याम बिहारी श्यामल गम संग सन्नाटा मिट्टी में तुरंत मिल जाए हंसो हंसो हंसो...
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आंखों को ही क़ुबूल कहां दिन-रात ग़मज़दा रोना
ख़ुशी के नन्हे संदल को क्यों न खोज निकालें अभी श्याम बिहारी श्यामल सूरज को मंज़ूर कब किसी दिन ग़ैरहाज़िर होना अंधेरे को मयस्स...
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लाखों साल में यह तस्वीर-ए-ज़हां लहराई
आब आतिश से आया, आग पानी ने जलाई श्याम बिहारी श्यामल तहज़ीब अचानक बनी न किसी एक ने बनाई रोशनी-ए-इल्म दूर से आते-आते आई ...
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भूलो मत दुनिया बदलने का ख्व़ाब
अल्फाज़ में आग असल भरोगे क्या श्याम बिहारी श्यामल साथी, बन कर समंदर करोगे क्या आब-ए-तर भी प्यासा मरोगे क्या भूलो मत ...
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सारा आसमान वह अछोर अदम
खूबसूरत भरम है वह बुलंदी श्याम बिहारी श्यामल आशियां कहीं कोई नहीं ऊपर चांद-सूरज तक भटक रहे बेघर छुआ-टटोला जा चुक...
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दिलदेश यह क़ाईदे यहां अपने ज़ुदा
ज़र्रे-ज़र्रे में रवां चांदनी-सी ज़ान श्याम बिहारी श्यामल शज़र-ए-ज़न्नत यह पल-पल नए अरमान मोहब्बत यह, जवां हर लम्ह...
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पत्थर को छुआ-जांचा, मुक़म्मल कपास था
दुनिया भौचक, शाइर कतई नहीं हैरान श्याम बिहारी श्यामल संगदुनिया में ग़ज़ब मंज़र आस पास था पत्थर को छुआ-जांचा, मुक़म्मल कप...
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दीवारें अक्सर फुसफुसाती हैं
नागवार लगे जब बात कोई श्याम बिहारी श्यामल सिर जोड़े जी भर बतियाती हैं दीवारें अक्सर फुसफुसाती हैं जो कुछ चला करे घर के...
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तरन्नुम-ए-रूह ग़ज़ल यह, मानी न कोई खोज यहां
लहरा रही आस्मान तक जो वह है खुशबू-ए-ज़मीं श्याम बिहारी श्यामल साज़-ए-दिल ज़िंदगी बज रही है शब-ओ-रोज़ यहां तरन्नुम-ए-रूह ग़ज़ल य...
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क्या ज़रूरी है हर सिम्त आँखों में ही खुले श्याम बिहारी श्यामल सुखन-ए-ज़िंदगी अब तो दुना चाहता हूँ चांद ज़रा झुको तुम्हें छून...
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ग़ज़ब रियाज़ उनका गुपचुप चुप रहना
अज़ब मुर्दा था गुलगुलापन गलीचे का श्याम बिहारी श्यामल मुमकिन कहां हलक में सच दबाए रखना वक़्त मुझे अपना हमसफ़र मत समझना क...
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तालीम ने नया चेहरा उसके मुंह पर धर दिया है
ग़ज़ल को बख्शी है उसने नई-नई शक्लें श्याम बिहारी श्यामल वक़्त ने तो अपने रोज़मर्रे को अंजाम-भर दिया है तालीम ने नया चेहरा उसक...
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अब जब सोचूं तो अक़ीदत की तरह
अब जब भी लिखूं तो इबादत की तरह श्याम बिहारी श्यामल अब जब सोचूं तो अक़ीदत की तरह जब भी अब लिखूं तो इबादत की तरह क्या है...
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आस्मां ज़मीं पर क्यों है
नींद को नींद नहीं क्यों श्याम बिहारी श्यामल ज़मीं आतिशतर क्यों है आस्मां ज़मीं पर क्यों है गुल है हंसा भी करे अक्सर च...
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हल्के झोंकों से पिघलता हुआ पत्थर देखा
आतिश क्यों बेताब है बर्फ़ हो जाने को श्याम बिहारी श्यामल दिल की निज़ामत का क्या नहीं मंज़र देखा धधकती बस्ती देखी बुलबुलों का...
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गम ज़माने का, रोए यह दिल क्यों ज़ार-ज़ार
सुख़नवर का हाशिए क्यों प्यार श्याम बिहारी श्यामल गम ज़माने का, रोए यह दिल क्यों ज़ार-ज़ार कैसा यह रिश्ता, ग़ज़ल ऐसी क्यो...
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शब हमने आब-ए-चश्म में बिताई है
अश्क़ को रंग व दर्द को स्वाद बनाते चलो श्याम बिहारी श्यामल ज़माना क्या जाने हुई कैसे लिखाई है ग़ज़ल यह क़ीमत क्या वसूल कर आई ...
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नजरें ढेढ़ी सूरज की
जगह-जगह पनसोखे हैं श्याम बिहारी श्यामल दरिया से यह कहना है अबाध बहते रहना है जगह-जगह पनसोखे हैं उनसे बचके चलना ...
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चेहरे खरीदना बहुत आसान हो गया
सहूलियत कि जब चाहो बदल डालो नकाब श्याम बिहारी श्यामल अफ्सां लफ्जीं, इश्क जुबानी शान हो गया दिल यह दिल न रहा, जैस...
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इन कंधों पर अभी बच्चे हैं
उस दिन देख चिहुंक जाओगे श्याम बिहारी श्यामल हालात बेशक़ कुछ कच्चे हैं इन कंधों पर अभी बच्चे हैं इस हौसले को क्या तोलो...
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कहीं उलट कहीं पलट कहीं अज़ब अंट शंट
वक़्त बर्बाद न कर वक़्त के पीछे श्याम बिहारी श्यामल कौन रोके मनमानी और गड़बड़झाला वक़्त कहां अपना क़िरदार बदलने वाला कहीं उल...
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अभी जो जन्मा अगले पल पुराना
उम्र की सुई पल-भर कहां थमती श्याम बिहारी श्यामल पल-पल नज़ारा करती नया चलती क़ुदरत क्या सोच अमल किया करती अभी जो जन्मा अ...
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आस्मां से क्या सीधे यहां आया है
आस्मां से क्या सीधे यहां आया है श्याम बिहारी श्यामल कद एक ऊंचा हमने गढ़ाया है मंजर को महज फौरी सजाया है खुदा है ...
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चुप्पियां हैं कि मुंह बंद रखने का नाम न लें
मौत मूरख अपनी औक़ात समझती ही नहीं श्याम बिहारी श्यामल ज़िद-ए-ज़िंदगी यह जबरदस्त, थमती ही नहीं मौत मूरख अपनी औक़ात समझती ही नह...
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