आंखों में आंख डालकर
श्याम बिहारी श्यामल
शख्स को ठिठकना पड़ता घर व बच्चों को सोच कर
वह शोर करते पीछे हट रहा उन्हीं से डर कर
ऐसा भी नहीं कि खेल उनका पोशीदा निहायत
कुछ बात थी आगे निकलना पड़ा आंखें मूंद कर
कुनबा-ए-शातिर सभी मोड़-ओ-मुक़ाम पर क़ाबिज़
बा-खैर कोई निकले कैसे चाहे जंग जीत कर
सीने में तूफां लिए खड़ा था सामने जो शख्स
हैरत है कैसे बात कर रहा था हंस-हंस कर
श्यामल ज़माने का यह अंदाज़-ए-गुफ्तगू जुदा
लोग तासीर माप रहे आंखों में आंख डालकर
गजब 👌👌
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-12-2018) को "शहनाई का दर्द" (चर्चा अंक-3179) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'