क़ायदा-ए- क़ायनात सारे अज़ब-गज़ब


बनता गया निहायत मुमकिन

श्याम बिहारी श्यामल 

जमे हुए को गलते व उखड़े को जमते देखा 
ज़िंदगी की नियामत में क्या-क्या न हमने देखा


जो नामुमकिन रहा बनता गया निहायत मुमकिन
आग के अड़ जाने पर लोहे को बहते देखा


चेहरों पर उगा देता पल भर में जो मुस्कान
उस मसखरे को यहीं अश्क़ो में तैरते देखा


खारिज़ हो रहे थे होनी-अनहोनी के जुमले
दरिया को ठिठकी और परबत को चलते देखा


श्यामल क़ायदा-ए- क़ायनात सारे अज़ब-गज़ब 
क्या-क्या न उसने और क्या-क्या नहीं तुमने देखा 
Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें