ग़ज़ल  जो बटोरा है सब खोना है  इसी एक बात का रोना है खेल अलग-अलग चला  अब अंत एक-सा होना है   कब्‍ज़ा बहुत लंबा-चौड़ा है...
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         चांदनी से सुना है यह चांदमहल है         श्‍याम बिहारी श्‍यामल ज़न्‍नत-ए-जां-ओ-ज़‍िगर साज़महल है  बेेेेशक़ यह नहीं मह...
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