झुकते दीवाने नीले चंदोवे के क्या कहने श्याम बिहारी श्यामल क़ायनात ने इतने प्यार से यूं ही नहीं पहने है सूरज चाँद सितारे धर...
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नवंबर 2018
दीदा-ए-चश्म क्यों ज़रा भी उनीन्दा नहीं था
ऊपर कौन हिस्सा जो गंदा नहीं था श्याम बिहारी श्यामल सतह पर जो उतराया था वह ज़िंदा नहीं था दरिया खुद पर पहले ऐसा शर्मिंदा नह...
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हम गज़ल-नज़्म रचें या यूं गुनगुनाएं
हो कोई शाह-ओ-पुरोहित-ओ-इमाम श्याम बिहारी श्यामल किसी को तोहफ़ा न कभी कोई इनाम ज़िंदगी पक्का हिसाब-क़िताब का नाम ...
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उल्फत कल नायाब थी कल भी लाज़वाब
आग से मत खेलिए ज़नाब श्याम बिहारी श्यामल क़ाबू अभी कर लीजिए खतरनाक ख्वाब भूलकर भी आग से मत खेलिए ज़नाब बेक़ाबू लपटें कभी ...
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किस ज़माने से कितनी आंखों में
जो करना हो कर ले घटा जो काली घिरी है श्याम बिहारी श्यामल सूरत-ए-हाल-ए-ज़हां कैसी यह पास मिरी है स्याह-ओ-सन्नाटे की जैसे बि...
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क़िरदार-ए-मज़ाक फ़टेहाल वह
वाराणसी में विजया सिनेमाहॉल में चौदह नवंबर(वर्ष 2018) को फिल्म 'मोहल्ला अस्सी' की स्पेशल स्क्रीनिंग के दौरान विख्यात कथाकार ...
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कौन चीख रहा हमारे भीतर
मंज़िल क्यों निढाल पड़ी श्याम बिहारी श्यामल लम्हा-ए-क़ामयाबी मुश्किल घड़ी थी यह मंज़िल क्यों इस क़दर निढाल पड़ी थी दिल से ज...
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हालात हर हक़ीक़त सामने लाते थे
कैसी हम शक्ल दे पाते थे श्याम बिहारी श्यामल जो कंधों से ऊपर उठाये जाते थे दर्जा-ए-ज़िंदा में वह कहां आते थे मर चुक...
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वह बे-पानी थे बरसते तो क्या
कहां सुरखाब के पर श्याम बिहारी श्यामल अल्फाज़ बेमानी वह कहते तो क्या ख्वाब आस्मानी थे अब करते तो क्या गरज-गरज तड़क-तड़क...
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नायाब सपनों का अनोखा गुलदस्ता निरंजन
कभी प्रात का आलाप कभी राग शाम वाला एक ऐसा मन जो सतत सक्रिय प्रयोगशाला ======== .................. चमकता सितारा निरंजन श्य...
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देखें इस ज़हर-जुनूं को इल्म कब तक मारता है
ज़हर हज़ार कंठों से मीठे पुकारता था श्याम बिहारी श्यामल कहां कौन उसके बारे में क्या नहीं जानता था ज़हर वह हज़ार कंठों से मी...
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दौर-ए-फरेब बिछा था सीढी बनकर
चुप्पी चुभी थी मलाल बनकर श्याम बिहारी श्यामल जो कह देते वह कभी करते नहीं थे जो करना था कभी वह खुलते नहीं थे क्य...
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हम तो वाक़िफ़ हैं वह असल रंगसाज़ हैं
लफ्ज़ मुक़म्मल हैसियत श्याम बिहारी श्यामल क़रीबी जो शातिर और साजिशबाज़ हैं शुरू से हमसे तहेदिल से नाराज हैं रंग बदल जब-तब...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल : धरती नहीं किसी भी खूंटी पर टंगी है
सूरज को अब तक तो हंकाना नहीं पड़ा श्याम बिहारी श्यामल यह फूल रंगा है न यह पत्ती रंगी है धरती नहीं किसी भी खूंटी से...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल : कुछ ख़ास कहा न गया
बेशर्म झूठ यह सहा न गया श्याम बिहारी श्यामल गुमज़ुबां अब और रहा न गया हालांकि कुछ ख़ास कहा न गया दिन को रात क...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल : क्रोशिए से कभी खुद को बुनना
सदाएं ज़िंदा अब भी उसकी ज़रूर सुनना श्याम बिहारी श्यामल एक ज़माने से बिखरे हुए तिनके चुनना चाहता हूं क्रोशिए से कभी खुद क...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल - हर चेहरा सब कुछ कहता था
नक़ाब-ओ-पैरहन बेमतलब थे यहां श्याम बिहारी श्यामल ज़ालिमों का कुछ भी पोशीदा था कहां नक़ाब-ओ-पैरहन बेमतलब थे यहां खुल...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल : हुज़ूम में खोया भी कर
आब-ए-ज़माने को धोया भी कर श्याम बिहारी श्यामल हंसी चमके और मुस्कान धुलती चले, रोया भी कर कारोबार-ए-ज़िंदगी चलती रहे, कभी बो...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल - 140
शिकंजा कसने की किसमें भला हिम्मत थी श्याम बिहारी श्यामल सबको कुबूल यहां पोशीदा हक़ीक़त थी छुपने-छुपाने की अब कहां ज...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल- 139
शरारा ने कहा ज़िंदा रहेंगे हम श्याम बिहारी श्यामल पूरा कुनबा उसी से परेशान था क्योंकि उसके पास अब भी ईमान था आग ...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल- 133
तब तारीख संवरती है श्याम बिहारी श्यामल दायरा टूटे बगैर बात कहां बनती है कहां घड़ी की सुई कभी कहीं पहुंचती हैं रोज़...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल- 132
शोलों को जिलाता श्याम बिहारी श्यामल बादल में आग है उससे बात कर फ़ुर्सत में श्यामल से मुलाक़ात कर क्या कहाँ कैसे क...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल - 131
सच यही यह बस श्याम बिहारी श्यामल जिसे लगती हो लगे यह ग़ज़ल हमारी यह तो ज़िंदगी असल अलामात अल्फाज़ मंज़र सब ...
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