किस ज़माने से कितनी आंखों में


जो करना हो कर ले घटा जो काली घिरी है

श्याम बिहारी श्यामल 

सूरत-ए-हाल-ए-ज़हां कैसी यह पास मिरी है
स्याह-ओ-सन्नाटे की जैसे बिजली-सी गिरी है

अंधेरा अंधेरे में है क़ामयाब हो कैसे
हमारे पास जो दरींचा-ए-अदब-ओ-शीरी है

ज़मीं पर उतर कर साथ चल रहा माहताब मेरे
अब जो करना हो कर ले घटा जो काली घिरी है

सामने न दिखता हो तब भी भीतर बहता रहता
दिल जो दरिया है चंगा मन भी गंगा-तीरी है

एक अदना श्यामल पर मुंह उठाए तोपें कई
किस ज़माने से कितनी आंखों में क्यों किरकिरी है





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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