गहरी खाई में धकेला गया जो था वही असल

पुरखों की भूमि सिताबदियारा के गरीबा टोला गोला (बाजार) में वर्ष २०१६ के जून की एक शाम का यादगार पल! (फोटो क्रेडिट : कथाकार सविता सिंह)  ...
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क़ायदा-ए- क़ायनात सारे अज़ब-गज़ब

बनता गया निहायत मुमकिन श्याम बिहारी श्यामल   जमे हुए को गलते व उखड़े को जमते देखा  ज़िंदगी की नियामत में क्या-क्या न हमने दे...
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मंज़िल को भी हमारे क़दमों का इंतजार था

ज़िंदगी ने अब तो सीख लिया था रंग बदलना श्‍याम बिहारी श्‍यामल हालात से क़रार था या नज़ारा-ए-हार था आखिर क्या था यहां जो सन्नाट...
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अजीब दरपेश था यह वक़्त-ए-खरीद फरोख्त

ईमानदार शख्स पर हंस रही थी भीड़ श्याम बिहारी श्यामल शातिर जो खुलेआम क़त्लेआम मचाते थे हैरत है वही कैसे वाहवाही पाते थे ...
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कैसी-कैसी शक्लें बदल रहा है सच

चाह रहे कुछ लोग सब कुछ खाक़ कर देना   श्याम बिहारी श्यामल   यह नासमझी-ए-आम या तारीख़ी भूल है  जो शातिर है कैसे अब वह सबको क़ुबू...
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मकान तो कच्चे थे लेकिन लोग पक्के थे

क़ातिल छुपकर बचा पाता था वज़ूद अपना श्याम बिहारी श्यामल   एक दौर जब फरेब के छूटते छक्के थे  मकान बेशक़ कच्चे लेकिन  लोग  पक्क...
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आईना दिखाता मंज़र उल्टा

गुमज़ुबानी  यह  क्यों  लादी  उसने श्याम बिहारी श्यामल  रेत हो गए थे मासूम  सपने नदी सहमी थी साहिल से अपने चेहरे नहीं...
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क़ातिल निकला शक़्ल-ए-फक़ीर अभी-अभी

अपने होने का सुबूत लेकर निकलिए श्याम बिहारी श्यामल   इस वज़ूद को मुकम्मल कतई न समझिए अपने होने का सुबूत लेकर निकलिए ...
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क्या मुकाम-ए-इंसां जो नज़र न आता था

विजेता गिरा था खुमार-ए-जश्न में श्याम बिहारी श्यामल   हर घूंट उसे सिर्फ भड़काता ही जाता था प्यास का बेचैनी से यह कैसा ...
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दरहक़ीक़त चट्टे-बट्टे सब

शातिरों के अनगिन रैले श्याम बिहारी श्यामल   दरअसल जो मन के मैले थे नीचे से ऊपर तक फैले थे दरहक़ीक़त चट्टे-बट्टे ...
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मुर्दे जल पर फैले ऊपर

मसखरे की मस्ती  क्या  ग़ज़ब   श्याम बिहारी श्यामल  क़दम-क़दम पर खुलेआम था  उसूलों का कत्लेआम था मुर्दे जल पर फैले ऊपर नज्र...
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कुनबा-ए-फरेब शबाब पर श्याम बिहारी श्यामल  जहां जो भी खरा-सच्चा था  बमुश्किल बाल-बाल बचा था शब्द खा चुकी शातिर चुप्पी ...
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चक्की को समझने में उम्र निकल गई

वह साथ पिसती रही पीसते-पीसते श्याम बिहारी श्यामल  चीर कर मुश्किल हालात को आहिस्ते  सामने आ ही जाते हैं कई रास्ते सूर...
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आप कैमरे की नज़र में हैं

कौन कहां से चला रहा तीर श्याम बिहारी श्यामल   सड़क पर या अपने घर में हैं  आप कैमरे की नज़र में हैं हवा नहीं अ...
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वक़्त बदल रहा हर पल हर क़दम

यकीं-ए-रोशनी के वास्ते श्याम बिहारी श्यामल   चीर कर मुश्किल हालात को आहिस्ते  आ ही जाते हैं सामने कई रास्ते सूरज से ...
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ऊंचाई पर मुस्कान एक अड़ी

उल्फत अब भी ज़ादू की छड़ी श्याम बिहारी श्यामल  अपने-आप में दुनिया चाहे जितनी हो बड़ी दिल के सामने आज भी सिर झुकाये वह खड़...
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अंधेरे को जमकर धिक्कारते रहिए

अनहोनी भी घटेगी श्याम बिहारी श्यामल   सरेज़िंदगी होनी अगर होकर रहेगी  बिल्कुल अटल है अनहोनी भी घटेगी    खदेड़ तो रहा...
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