आईना दिखाता मंज़र उल्टा

गुमज़ुबानी  यह  क्यों  लादी  उसने श्याम बिहारी श्यामल  रेत हो गए थे मासूम  सपने नदी सहमी थी साहिल से अपने चेहरे नहीं...
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क़ातिल निकला शक़्ल-ए-फक़ीर अभी-अभी

अपने होने का सुबूत लेकर निकलिए श्याम बिहारी श्यामल   इस वज़ूद को मुकम्मल कतई न समझिए अपने होने का सुबूत लेकर निकलिए ...
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मुर्दे जल पर फैले ऊपर

मसखरे की मस्ती  क्या  ग़ज़ब   श्याम बिहारी श्यामल  क़दम-क़दम पर खुलेआम था  उसूलों का कत्लेआम था मुर्दे जल पर फैले ऊपर नज्र...
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कुनबा-ए-फरेब शबाब पर श्याम बिहारी श्यामल  जहां जो भी खरा-सच्चा था  बमुश्किल बाल-बाल बचा था शब्द खा चुकी शातिर चुप्पी ...
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चक्की को समझने में उम्र निकल गई

वह साथ पिसती रही पीसते-पीसते श्याम बिहारी श्यामल  चीर कर मुश्किल हालात को आहिस्ते  सामने आ ही जाते हैं कई रास्ते सूर...
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आप कैमरे की नज़र में हैं

कौन कहां से चला रहा तीर श्याम बिहारी श्यामल   सड़क पर या अपने घर में हैं  आप कैमरे की नज़र में हैं हवा नहीं अ...
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