कैसी-कैसी शक्लें बदल रहा है सच


चाह रहे कुछ लोग सब कुछ खाक़ कर देना 

श्याम बिहारी श्यामल 

यह नासमझी-ए-आम या तारीख़ी भूल है 
जो शातिर है कैसे अब वह सबको क़ुबूल है  

उन्हीं हाथों को सौंप रहे बागडोर कैसे
लिपटा-सा दिख रहा जिनमें लहू-ए-उसूल है 

बागवां है वह या क़ातिल ही दरअसल कोई 
जिसके नाम से डरा हुआ हर शज़र-ओ-गुल है 

क्यों चाह रहे कुछ लोग सब कुछ खाक़ कर देना 
उनके अल्फाज़ से हवा में ज़हर रहा घुल है 

श्यामल कैसी-कैसी शक्लें बदल रहा है सच
कौन है जो हरेक बात को दे रहा तूल है








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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:

  1. बागवां है वह या क़ातिल ही दरअसल कोई
    जिसके नाम से डरा हुआ हर शज़र-ओ-गुल है
    ...वाह

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