श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल- 133


तब तारीख संवरती है

श्याम बिहारी श्यामल  

दायरा टूटे बगैर बात कहां बनती है  
कहां घड़ी की सुई कभी कहीं पहुंचती हैं 

रोज़मर्रे बख्शते कहां गुंजाइश कोई  
लीक टूटती है तब तारीख संवरती है

शिकस्त तो शिकस्त, जीत भी कहाँ अलग उससे
सिर पर ताज़ आते यहां दहशत टपकती है

ज़िंदगी के घर और  मौसम अजीबोगरीब
बिना बारिश ही यादें दिन-रात टपकती है


श्यामल वक़्त से बड़ा हिसाबी-क़िताबी कौन
एक-एक सांस क़ीमत वसूलती बढती है
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-11-2018) को "छठ पूजा का महत्व" (चर्चा अंक-3152) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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