पत्थर को छुआ-जांचा, मुक़म्मल कपास था


दुनिया भौचक, शाइर कतई नहीं हैरान  

श्याम बिहारी श्यामल 

संगदुनिया में ग़ज़ब मंज़र आस पास था   
पत्थर को छुआ-जांचा, मुक़म्मल कपास था   

हवाओं ने कहा, असर यह अभी तक क़ायम 
बेशुमार जो खिला, यह दिल का अहसास था  

खाक़ में दबा-दबा ही वह तकता आस्मान 
चश्म-ए-गुंबद जो यह, रंग-ए-असास था

दुनिया भौचक, शाइर कतई नहीं हैरान  
इश्क़ज़हां यह ऐसा यहां हर कुछ ख़ास था

श्यामल कुछ एकदम अलग हर बाद जुदा 
बाजू-ए-बूत उदास, यह संगतराश था


-----------------------------------------
चश्म-ए-गुंबद = गुंबद की आंख 
रंग-ए-असास = नींव का रंग 
इश्क़ज़हां = प्रेम की दुनिया 
बाजू-ए-बूत = मूर्ति के बगल में 
संगतराश = मूर्ति तराशने वाला  




Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें