ख़ास-ख़ास शक्लें खंगाल रहा कैसे


देख हाल-ए-मिरात सच भी शर्मिंदा है 

श्याम बिहारी श्यामल 

ईमान-ए-आईना कहां ज़िंदा है
देख लीजिए वह किसका साज़िन्दा है 

जिसके हाथ हो रहा यहां इस्तेमाल
वह शख्स आख़िर किसका नुमाइंदा है 

चालाकी से यूं पकड़ रखे हैं उसने 
पीछे घूमती नहीं सतह ताबिंदा है 

ख़ास-ख़ास शक्लें खंगाल रहा कैसे
निशाने पर सिर्फ़ चेहरे चुनिंदा हैं

जो खेल चलाया जा रहा सच के नाम
हासिल किस ख़ातिर वह क्या आइंदा है 

श्यामल हालात को उलट-पलट कर परख  
देख हाल-ए-मिरात सच भी शर्मिंदा है 

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साज़िंदा = बाजा बजाने वाला 
नुमाइंदा = प्रतिनिधित्व करने वाला 
ताबिंदा = चमक
हासिल = उपलब्धि 
आइंदा = आने वाला, भावी  
मिरात = आईना 

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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:

  1. ख़ास-ख़ास शक्लें खंगाल रहा कैसे
    निशाने पर सिर्फ़ चेहरे चुनिंदा है...वाह👌 क्या बात है

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