आईने के भीतर हमने दिल टूटते देखा है


गुमसुम आस्मां की नई मासूमियत पर न जा

श्याम बिहारी श्यामल 

दरम्यां सच-झूठ के अब कहां पतली भी रेखा है      
आईने के भीतर हमने दिल टूटते देखा है 

सामने सलामत खड़ा दिख रहा चमकता-सा बेशक़ 
रूह-ए-मिरात को पता मंज़र यह अज़ब धोखा है

शातिर हैं कुछ लोग जो यहां तीन-पांच में लगे हैं 
अपनी क़रतूत को कहते यह क़िस्मत का लेखा है

गुल जो तोड़ कर लाया कुछ घंटों में दम तोड़ चुका 
प्लास्टिक वाले सजावटी का रंग बरसों से चोखा है

श्यामल गुमसुम आस्मां की नई मासूमियत पर न जा
बैठे-बैठे इसी ने तो आब-ए-चश्म सोखा है  
  
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दरम्यां = बीच में 
मिरात - आईना





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:


  1. सामने सलामत खड़ा दिख रहा चमकता-सा बेशक़
    रूह-ए-मिरात को पता मंज़र यह अज़ब धोखा है
    …वाह वाह

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