दिलदेश यह क़ाईदे यहां अपने ज़ुदा

  
ज़र्रे-ज़र्रे में रवां चांदनी-सी ज़ान

श्‍याम बिहारी श्‍यामल

शज़र-ए-ज़न्‍नत यह पल-पल नए अरमान
मोहब्‍बत यह, जवां हर लम्‍ह इसकी शान

आया कब एक मोरमुकुट बंसीवाला
फीकी नहीं पड़ी आज तक मोहिनी तान 

दिलदेश यह क़ाईदे यहां अपने ज़ुदा 
चांद-सूरज अब तक इस राह से अनजान

तकते, सांस लेते नदी-परबत सब यहां 
ज़र्रे-ज़र्रे में रवां चांदनी-सी ज़ान 

कौन श्‍यामल यहां, किसको नहीं यह पता
ग़ज़ल-ए-गुल यह, खुशबू इसकी उनवान 

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शज़र-ए-ज़न्‍नत = स्‍वर्ग का पेड़ 
क़ाईदे = नियम  
ज़र्रे-ज़र्रे = कण-कण 
रवां = व्‍याप्‍त
उनवान = शीर्षक‍

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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:


  1. आया कब एक मोरमुकुट बंसीवाला
    फीकी नहीं पड़ी आज तक मोहिनी तान … वाह वाह

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