इक़बाल-ए-चश्म यूं बुलंद करो
श्याम बिहारी श्यामल
कभी देखना, कभी तोलना औ' ताड़ना
फितरत-ए-निगाह कहां केवल ताकना
तवारीख़-ओ-अफ्सां मिसालें बेमिसाल
नामुमकिन 'वाह वाह' कहने से रोकना
जनकपुर वाटिका में कब मिले चार नैन
अब भी संभव वह आदि-प्रेम महसूसना
वृन्दावन के कण-कण ने रखे हैं संभाल के
बंसी का बजना, नयनों का वही थिरकना
भड़की, फिर सिहरी, पशुता अंततः भस्म
अंगुलिमाल पर यह था बुद्ध का देखना
शूली चढ़े मसीहा की करुण वह निगाह
जगाए दो हज़ार साल बाद भी करुणा
नूर-ए-निगाह दिखी मदीने में ऐसी
सिखाए जो तब से राह-ए-ईमां चलना
श्यामल इक़बाल-ए-चश्म यूं बुलंद करो
सरगम जगाना बने निगाहों का पड़ना
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फितरत-ए-निगाह = निगाह का स्वभाव
तवारीख़-ओ-अफ्सां = इतिहास और कथाओं में
अंगुलिमाल = बौद्ध साहित्य में वर्णित एक लुटेरा या दरिंदा ( कथा :::: अंगुलिमाल बेगुनाहों की बेतहाशा हत्याएं करता और शिकार बने व्यक्ति की अंगुली काट कर अपने गले की माला में डाल लेता था. कथा के अनुसार उसने जंगल से गुजर रहे भगवान बुद्ध को भी निशाना बनाने की कोशिश की. उसने डरावनी आवाज़ में चीखते हुए कहा '..रुक जाओ ..!'
उसकी आवाज़ पर भगवान तत्काल रुक गए. अंगुलिमाल को अपनी आवाज़ पर लोगों को जान बचाने के लिए भागते हुए देखने की आदत थी. उसे बिना डरे रुके व्यक्ति पर आश्चर्य हुआ. कटार उठाए वह सामने आ गया. बुद्ध ने उस पर स्नेहिल दृष्टि डालते हुए पूछा, '..मैं तो रुक गया, तू कब रुकेगा ?'
कहा जाता है कि इस एक वाक्य ने अंगुलिमाल की पशुता को पल भर में भस्म कर दिया. उसका ह्रदय परिवर्तित हो गया. उसने कटार दूर फेंक दी. अपने गले की अंगुली-माला को तोड़ डाला और भगवान के चरणों में गिर पड़ा. )
नूर-ए-निगाह = दिव्य दृष्टि
इक़बाल-ए-चश्म = आँखों का तेज
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