93 में नामवर, करोड़ों में नामवर

हिन्दी साहित्य के शलाका-पुरुष डा. नामवर सिंह का आज 93 वां जन्म-दिन 
 

यह जो आग लेसने वाली क़लम, इसके मुरीद हैं हम  

श्याम बिहारी श्यामल


ह (नामवर सिंह) जब  वैचारिक ऊष्मा के कण छिटकाने लगते हैं तो सामने बैठा पत्थर भी बगैर हिले-डुले नहीं रह सकता। ठीक वैसे ही जैसे हिन्दी साहित्य क्षेत्र का कोई भी नागरिक नामवर-विमुख होकर कदापि नहीं रह सकता। उसे या तो नामवर-समर्थक कहा जाना तय है या नामवर-विरोधी। उनका नाम आने पर एकबारगी कोई निश्शब्द रह ही नहीं सकता। कुछ सकारात्मक सुघड़ नहीं तो जला-भुना नकारात्मक ही, सोच्चारण सस्मित नहीं तो ऐंठे-मुंह धुआंते-अंधेरे मन के बेसुरे सुरंग-स्वर से ही लेकिन उसे कुछ न कुछ बोल कर ही आगे बढ़ना होता है। 

     सा इसलिए क्योंकि नामवर कोई ऐसा खूंटाठोंक पताका-खंबा नहीं हैं जिसे एक बार में माप-तौल कर स्वीकार या नकार दिया जाए और आगे-पीछे या दाएं-बाएं निकल लेना मुमकिन बना लिया जाए। वह तो धारा-प्रवाह बहते हैं। अपनी हर धार को धोते और हर बहाव को तोड़ते-मोड़ते हुए। हर पल ताज़ा, हर लम्हा नया। वह जब मुख़ातिब होते हैं तो सामने बात-विचारों की एक आंधी मचल रही होती है। जिनके लिए इसका मुक़ाबला मुमकिन नहीं रह जाता ऐसे लोगों के सामने अक्सर मुंह मोड़कर पीठ का सहारा लेने का इकलौता विकल्प ही बचता-दिखता है। 

   ..पीठ-पीछे का वाचक-धर्म कैसा भी हो सकता है.. और नामवर हैं कि कभी कोई एकतरफा विवरण धुनते नहीं चले जाते बल्कि हर बार कुछ अलग ही विश्लेषण मुहैया कराते हैं और अपने सारे पूर्व-सहमत या सदा-असहमत जनों के लिए बार -बार चुनौती लहराते हैं। उन्हें सामने के शख़्स को सहमति के लिए बरगलाना नहीं, असहमति के लिए उकसाना या तैयार करना ख़ूब पसंद है। वैसे ही जैसे आग देखने की चाहत रखने वाले पत्थर को एक और पत्थर ही ढुंढना और उसे टकराने को तैयार करना होता है।

   ..गरज यह कि आग लेसने वाली यह क़लम आज 93 की वसंत-ड्योढ़ी में प्रवेश कर रही है और हमें उसकी चिन्गारी का ताप देखने, छूने, पाने, ओढ़ने-पहनने का प्रत्यक्ष लाभ भी मयस्सर है.. इससे बड़ी सुखद बात भला दूसरी क्या हो सकती है... कहने को उनका एक जन्म-दिन २८ जुलाई भी है लेकिन ख़ुद उन्हें और उनके कुछ प्रशंसकों को एक मई अधिक पसंद है.. इस अवसर पर उन्हें आदर सहित शत-शत शतायु कामना के साथ प्रणाम। .  
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:

  1. पूरी तरह सहमत हूं। नामवर जी अद्वितीय हैं और रहेंगे। मुझे गर्व है कि उन्होंने मेरे कविता स&ग्रह 'गेहूं घर आया पर' बोला और लिखा। साथ ही मेरे कवितासंग्रह 'माँ गाँव में है' के लिए मेरी कविताओं का चयन किया जो पर्याप्त चर्चा में भी रहा। मुझे कविता पर जो पहला प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था वह था -सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड्। नामवर जी महासचिव थे। अत: उनकी भी भूमिका रही होगी। उनके इस जन्मदिन पर भी उन्हें हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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