मौत छुपती फिरती है ज़िंदगी से डर कर श्याम बिहारी श्यामल जब-जब पीर का पर्वत पिघलता मेरे अंदर आंखें रोके रखतीं ...
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अक्तूबर 2018

श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल- 114
फैला खुशरंग चन्दन श्याम बिहारी श्यामल नजरें पहुंचा रहीं दूर तक चुम्बन यूं अब संभव स्पर्श-गुलाब आलिंगन ...
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श्याम बिहारी श्यामल की गज़ल- 113
वाराणसी में २७-२८ अक्टूबर'१८ की देर रात लहुरावीर पर नक्कटैया मेले में सविता जी की सेल्फी खूंरेज़ महल यह तो श्याम बिहारी ...
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श्याम बिहारी श्यामल ध ग़ज़ल- 118
आंखों में अब कोई पानी कहाँ श्याम बिहारी श्यामल दूध कहाँ दूध और पानी कहीं पानी कहाँ था यही तो दूध का दूध पानी का...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल - ११७
बहती गंगा में हाथ धोना था श्याम बिहारी श्यामल महफूज कहां कोई कोना था अब तो इसी बात का रोना था हर चेहरा उनका डरा...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 122
वाराणसी में इक्कीस अक्तूबर (वर्ष 2018) को दैनिक जागरण का 'डांडिया रास' कार्यक्रम देखकर कैंट क्षेत्र से घर लौटते हुए कथाकार सविता...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 122
कुछ तो है बात ऐसी श्याम बिहारी श्यामल इम्तिहान जब सामने आता है कहाँ तब कोई साथ निभाता है मुसीब...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल - 110
कंकड़ किसी आंत में कहां पचा है श्याम बिहारी श्यामल अंधेरे ने उजाले को रचा है रात है तभी यहां दिन भी बचा है ...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 117
कैसे छुअन में सिहरन श्याम बिहारी श्यामल ढंकता कहां खुला मन नाकाफ़ी है पैरहन कपासी है यह कि कागज़ी फरि...
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श्याम बिहारी श्यामल की गज़ल 114
संग को संगदिल न होना भारी पड़ा श्याम बिहारी श्यामल कैसे असर-ए-अशआर ऐसा बड़ा हो गया मुर्दा कई दिनों से जो ...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 116
थर-थर कभी तो धू-धू अक्सर श्याम बिहारी श्यामल ज़मीं आग की जिस पर कागज़ का घर जिंदगी ने दिखा दिए क्या-क्या मंज़र लपकता र...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 113
गुल आते ही हैं गुलशन को बना देने नया श्याम बिहारी श्यामल क्या देखी-अनदेखी या कैसी कही-अनकही हमने जो देखी-सुनी वही बस...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल
ग़ज़ल वह जो खुशरंग ने गाई है श्याम बिहारी श्यामल ज़माने से यह बुझ कहाँ पाई है आग वह जो पानी ने लगाई है हम ज़ुबां-ओ-लफ़्ज ...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल
मुश्किलों ने मुश्किल बना मुश्किल से बचाया है श्याम बिहारी श्यामल हालात ने हर बार झकझोरा है उड़ाया है तूफां-ए-गम ने हमे...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 09
रवानी-ए-खुशरंग कब से खूनी है श्याम बिहारी श्यामल ज़िंदगी याद कर तू मेरी ही चुनी है अफ़सोस अब तक मेरी एक न सुनी है...
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हर आंख में एक बयान है
रेत निढाल है हैरान है श्याम बिहारी श्यामल उसकी आंखों में तो शैतान है हद है यहां वही निगहबान है रातों-रात कहां गई दरि...
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श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल
लफ्ज़ पशेमान है श्याम बिहारी श्यामल उसकी आंखों में तो शैतान है कैसे वह अब निगहबान है रातों-रात कहां गई दरिया कही...
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सियासत-ए-बाज़ार है यह या तिजारत-ए-सियासत
ग़ज़ल बेच रहे बचावी इंतजामात श्याम बिहारी श्यामल इल्म-ओ-बाज़ार की खुदा से नहीं हुई है मुलाक़ात वरना पहुँच जाती पता नहीं ...
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गूंजती सबकी बेसाख्ता हँसी
गूंजती सबकी बेसाख्ता हँसी श्याम बिहारी श्यामल इल्म-ए-फ़रेब इस हद तक पहुँचाया जा चुका था चलते-फिरते शख्स को मुर्दा बनाया ...
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