श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 116


थर-थर कभी तो धू-धू अक्सर 

श्याम बिहारी श्यामल 

ज़मीं आग की जिस पर कागज़ का घर 
जिंदगी ने दिखा दिए क्या-क्या मंज़र 

लपकता रहा ऊपर सोने का जाल 
पसरा हवा में रंग-बिरंगा-सा डर 

हक़ीम-ए-दिल के पास अब काम नहीं 
बेदिली का आया फायदा निकल कर 

आदमी वह पहुंचा सौंपने सब कुछ 
क्या करेंगे हमीं चांद-सूरज ले कर 

लगा रहा हांक आज लुआठी वाला 
चलो देखें बाज़ार अभी पहुंच कर 

फ़ना होने के किस्से सुने थे बहुत 
तजुर्बा चमक उठा दरिया में जल कर 

परबत न दीवार वही अदना साहिल 
मचल रहा कब से क़ैदबंद समंदर 

हुजूम में सुनूंगा अपना सन्नाटा 
बजता कैसा ज़ंजीरबंद बवंडर 

श्यामल थर-थर कभी तो धू-धू अक्सर 
 भूकंप-ज्वालामुखी क्या-क्या तेरे अंदर
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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