बनारस का 'राजकीय क्वींस कॉलेज', प्रेमचंद का आरंभिक शिक्षण संस्थान। ( अपनी छत से सविता सिंह द्वारा लिया चित्र ) |
काशी का विख्यात 'राजकीय क्वींस कॉलेज', जहां प्रेमचंद के पहले भारतेन्दु बाबू और कवि-सम्राट हरिऔध ने भी पढ़ाई की थी। ( छत से नीचे जाकर निरंजन देव सिंह द्वारा लिया चित्र ) |
घर के ऐन सामने यह अनोखा प्रेमचंद-स्मृति स्थल
हिन्दी साहित्य के आंगन में आज ( 31 जुलाई 2011 को ) कथासम्राट प्रेमचंद की 132 वीं जयंती की धूम मची हुई है। हमारे शहर वाराणसी में तो तीन दिनों से खास गहमागहमी है। 29 जून से ही आयोजन चल रहे हैं। राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर संस्कृति मंत्री सुभाष पांडेय ने शुक्रवार ( 29 जुलाई ) को कार्यक्रमों की शुरुआत की। लमही में प्रस्तावित प्रेमचंद शोध संस्थान के लिए अधिगृहीत भूमि के कागजात संस्कृति मंत्री ने शुक्रवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को विधिवत् सौंपे। समारोह में उपस्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डीपी सिंह ने कागजात प्राप्त किये। प्रेमचंद के ग्रामीण इलाके में मेला लगा है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की लंबी सूची है। आज सबका रुख उनके जन्मस्थान ( अर्थात् लमही गांव ) की ओर है। संयोग यह कि प्रेमचंद का आरंभिक विद्यालय यानि राजकीय क्वींस कॉलेज यहां जगतगंज में हमारे ही दरवाजे के सामने है। इसी शिक्षण संस्थान में महाकवि जयशंकर प्रसाद की भी कक्षा छह तक की शिक्षा-दीक्षा हुई। खड़ी बोली हिन्दी के प्रथम महाकाव्य 'प्रिय प्रवास' के रचयिता कवि-सम्राट अयोध्या सिंह उपाध्याय ' हरिऔध ' ने भी यहीं शिक्षा पायी। मुग्ध कर देने वाली सूचना तो यह कि आधुनिक हिन्दी भाषा-साहित्य-पत्रकारिता के जनक भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र तक की भी पढ़ाई इसमें हुई है। ...और यह ऐतिहासिक शिक्षण संस्थान ऐन मेरे घर के इतने पास है कि कथाकार सविता सिंह ने अभी-अभी ( दोपहर, 01.18 ) अपनी छत से ही इसकी एक तस्वीर उतार ली। दूसरी छवि छोटे पुत्र निरंजनदेव सिंह ( कक्षा छह, केंन्द्रीय विद्यालय, 39 जीटीसी, वाराणसी ) ने छत से उतरकर गेट ( क्वींस कॉलेज ) के पास जाकर ली है। प्रेमचंद-जयंती पर आज यही आपके लिए खास चित्रोपहार...
ऐतिहासिक राजकीय क्वींस कॉलेज : जहां प्रेमचंद के बाद महाकवि जयशंकर प्रसाद ने भी की थी पढ़ाई। ( निरंजन देव सिंह द्वारा ली हुई तस्वीर, 31 जुलाई 2011 / 01. 25, दोपहर ) |
क्वींस कालेज का छात्र होने के कारण यह सब पढ़ना बहुत सुखकारी रहा...
जवाब देंहटाएंवाह... बंधुवर रंगनाथ जी, सचमुच यह गर्व की बात है... मुझे तो इसके पास रहने और रोज़ भर निगाह निहारने का सुख अवश्य मिल रहा है... यह अनुभूति अमूल्य है... आपको ऐसे सुखकर अतीत-थाती का स्वामी होने के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएं