श्याम बिहारी श्यामल की कविताएं
।। नदी - एक ।।
नदी ने जब-जब चाहा
गीत गाना
रेत हुई
कंठ रीते
धूल उड़ी
खेत हुई
।। नदी - दो ।।
चट्टानों से खूब लड़ी
बढ़ती चली
बहती गयी
मगर वह ठहरी नदी
बांधी गयी
साधी गयी
।। नदी - तीन ।।
वह चाहती थी
सूखी धरती को तर करना
मरुथल को हरा-भरा
राह रोकी पर्वतों ने
आड़े आयीं चट्टानें
मगर वह रुकी नहीं
मुड़-मुड़कर निकली आगे
वह टूटी नहीं
पराजित झुकी नहीं
सूरज को निगला
चांद को गले उतारा
आकाश कांप उठा
अब आंखें उसकी भासित थीं
वह विफर रही थीं
निकली थी महासमर में
रणचंडी बनकर
।। मकान - एक ।।
अचानक टूटा
तिलिस्म चकमक-चकमक
घिर गया मैं
खमखमाये खड़ी है
मेरे इर्द-गिर्द
दैत्यों की जमात
संगठित
।। मकान - दो ।।
बड़े इत्मीनान से
निगलते जा रहे हैं
हमें मकान
हम तान लेते हैं मौत
हर रोज
उनकी आंत में
हम कैसे तोड़ेंगे
यह लाक्षागृह ?
।। मकान - तीन ।।
तिनतरफा पोर्टिको
ड्राइंगरूम से जुड़ा बेडरूम
अटैच्ड लैट्रिन बाथरूम
बेहतर लान
रिमझिम-रिमझिम नींद
ओस-सी थकान
बहुत निरोग है मेरा मकान
बंद दरवाजा
बंद खिड़कियां
न दिखती है जनता
जरा भी नहीं चिन्ता
बड़ा इत्मीनान
संसद है यह मेरा मकान
पता: मार्फत श्रीरामजनम राय, सी 27/156, जगतगंज, वाराणसी। मो.नं. 9450955978/9450707614
0 श्याम बिहारी श्यामल 0
जन्म: 1965। करीब ढाई दषक से लेखन व पत्रकारिता। 1998 में प्रकाषित पहला उपन्यास ‘धपेल’ ;पलामू के सूखा-अकाल पर केंद्रित/राजकमल प्रकाषनद्ध खासा चर्चित। 2001 में एक अन्य उपन्यास ‘ अग्निपुरुश’ ;राजकमल पेपरबैक्सद्ध और इनसे पहले कविता-पुस्तिका ‘प्रेम के अकाल में’ ;1998द्ध व लघुकथा-पुस्तिका ‘लघुकथाएं अंजुरी भर’ ;1984द्ध प्रकाषित। बलराम सम्पादित ‘विष्व लघुकथा कोष’ व डा.नागेष्वर लाल सम्पादित ‘आखिरी दषक की लम्बी कविताएं’ में सम्मिलित। फिलहाल मुंबई से प्रकाषित प्रमुख मासिक साहित्यिक पत्रिका ‘नवनीत’ में ‘‘कंथा’’ उपन्यास का मई 2010 से धारावाहिक प्रकाषन जारी, यह महाकवि जयषंकर प्रसाद के जीवन और उनके ख्ुग पर केंद्रित है। पेषे से पत्रकार, दैनिक जागरण वाराणसी के संपादकीय विभाग से सम्बद्ध। संपर्क: मार्फत श्रीरामजनम राय, पूर्व विधायक, सी 27/156, जगतगंज, वाराणसी, उप्र। ब्लाग: श्यामबिहारीश्यामल.ब्लागस्पॉट.कॉम ; मोबाइल नंबर 9450955978/9450707614
।। नदी - एक ।।
नदी ने जब-जब चाहा
गीत गाना
रेत हुई
कंठ रीते
धूल उड़ी
खेत हुई
।। नदी - दो ।।
चट्टानों से खूब लड़ी
बढ़ती चली
बहती गयी
मगर वह ठहरी नदी
बांधी गयी
साधी गयी
।। नदी - तीन ।।
वह चाहती थी
सूखी धरती को तर करना
मरुथल को हरा-भरा
राह रोकी पर्वतों ने
आड़े आयीं चट्टानें
मगर वह रुकी नहीं
मुड़-मुड़कर निकली आगे
वह टूटी नहीं
पराजित झुकी नहीं
सूरज को निगला
चांद को गले उतारा
आकाश कांप उठा
अब आंखें उसकी भासित थीं
वह विफर रही थीं
निकली थी महासमर में
रणचंडी बनकर
।। मकान - एक ।।
अचानक टूटा
तिलिस्म चकमक-चकमक
घिर गया मैं
खमखमाये खड़ी है
मेरे इर्द-गिर्द
दैत्यों की जमात
संगठित
।। मकान - दो ।।
बड़े इत्मीनान से
निगलते जा रहे हैं
हमें मकान
हम तान लेते हैं मौत
हर रोज
उनकी आंत में
हम कैसे तोड़ेंगे
यह लाक्षागृह ?
।। मकान - तीन ।।
तिनतरफा पोर्टिको
ड्राइंगरूम से जुड़ा बेडरूम
अटैच्ड लैट्रिन बाथरूम
बेहतर लान
रिमझिम-रिमझिम नींद
ओस-सी थकान
बहुत निरोग है मेरा मकान
बंद दरवाजा
बंद खिड़कियां
न दिखती है जनता
जरा भी नहीं चिन्ता
बड़ा इत्मीनान
संसद है यह मेरा मकान
पता: मार्फत श्रीरामजनम राय, सी 27/156, जगतगंज, वाराणसी। मो.नं. 9450955978/9450707614
0 श्याम बिहारी श्यामल 0
जन्म: 1965। करीब ढाई दषक से लेखन व पत्रकारिता। 1998 में प्रकाषित पहला उपन्यास ‘धपेल’ ;पलामू के सूखा-अकाल पर केंद्रित/राजकमल प्रकाषनद्ध खासा चर्चित। 2001 में एक अन्य उपन्यास ‘ अग्निपुरुश’ ;राजकमल पेपरबैक्सद्ध और इनसे पहले कविता-पुस्तिका ‘प्रेम के अकाल में’ ;1998द्ध व लघुकथा-पुस्तिका ‘लघुकथाएं अंजुरी भर’ ;1984द्ध प्रकाषित। बलराम सम्पादित ‘विष्व लघुकथा कोष’ व डा.नागेष्वर लाल सम्पादित ‘आखिरी दषक की लम्बी कविताएं’ में सम्मिलित। फिलहाल मुंबई से प्रकाषित प्रमुख मासिक साहित्यिक पत्रिका ‘नवनीत’ में ‘‘कंथा’’ उपन्यास का मई 2010 से धारावाहिक प्रकाषन जारी, यह महाकवि जयषंकर प्रसाद के जीवन और उनके ख्ुग पर केंद्रित है। पेषे से पत्रकार, दैनिक जागरण वाराणसी के संपादकीय विभाग से सम्बद्ध। संपर्क: मार्फत श्रीरामजनम राय, पूर्व विधायक, सी 27/156, जगतगंज, वाराणसी, उप्र। ब्लाग: श्यामबिहारीश्यामल.ब्लागस्पॉट.कॉम ; मोबाइल नंबर 9450955978/9450707614
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