

धपेल की सालगिरह
आंगन मे` परिचर्चा
विचार के क्रम में पहला नाम राजकमल प्रकाशन का सामने आया और दो-चार दिनों के भीतर पांडुलिपि रवाना कर मैंने राहत की सांस ली। न कहीं कोई खास संपर्क न भाग-दौड़ की ज़रा भी गुंजाइश लेकिन सुखद आश्चर्य यह कि किताब स्वीकृत हो गयी और कुछ ही समय बाद छपकर सामने भी आ गयी। सही अर्थों में प्रकाशन... जैसे छोटे से आंगन का पुराना अंधेरा तार-तार कर प्रकाश छा गया हो... 'धपेल' की चर्चा ऐसी कि लगातार कहीं न कहीं कुछ छपने की सूचना आने लगी... 'रविवारहिन्दी' के मॉडरेटर आलोक पुतुल तब 'अक्षर पर्व' के संपादक थे, उन्होंने 'धपेल' लिखे जाने की कहानी लिखने को कहा... बड़ी दुविधा पैदा हुई लेकिन यह एक उचित अवसर भी महसूस हुआ धरती के उस खंड ( पलामू ) की व्यथा को सीधे-सीधे बयान करने का, जहां अकाल की रिपोर्टिंग करने गये एक पत्रकार की आहत संवेदना उपन्यास बनकर सामने आने को विवश हुई थी... आलोक पुतुल ने यह 'धपेल लिखने की कहानी' पुस्तक-समीक्षा के साथ ही प्रकाशित की...राजकमल प्रकाशन से मेरी किताबें तत्काल मंगाने का लिंक
http://www.rajkamalprakash an.com/index.php?p=sr&Fiel d=author&String=Shyam+Biha ri+%5C%5C
http://www.rajkamalprakash
( फेसबुक पर हुई चर्चा यहा` पेश है )
आपके लेखन की पैनी धार सचमुच सराहनीय है ,,,इसे बनाए रखे...दुनिया आज भी अच्छे लेखन की दीवानी है
जवाब देंहटाएंधपेल को याद करते हुये आपने मुझे याद किया, भला लगा. असल में धपेल चौंकाने वाली किताब थी. इसलिये उस पर आपकी रचना प्रक्रिया जानना लगा था.मुझे अगर ठीक याद है, रोहिणी अग्रवाल जी ने उस पर लिखा था. है न ! उस उपन्यास की रचना प्रक्रिया को इस ब्लाग पर चस्पा करना चाहिये.
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