याराना : पटना में 21 अक्‍टूबर 2011 को अवधेश प्रीत के साथ।



धड़कते गद्य का शिल्‍पकार अवधेश प्रीत

श्‍यामबिहारी श्‍यामल

         21 अक्‍टूबर 2011 को पटना में कथाकार-साथी अवधेश प्रीत का संग-साथ। बनारस में वर्षों पहले 'कथा संगमन' के बाद यह मुलाकात। साथ में रचनाकार अरुण नारायण भी। सुखद अनुभूति यह कि इस दौरान उनके कहानी-संग्रहों की संख्‍या एक से बढ़कर पांच हो गयी है। पुस्‍तक रूप में कहानियों का परिमाण इतना तो अवश्‍य ही अब सर्वसुलभ हो चुका है कि उनके सर्जक का सृजन कद कोई भी आपादमस्‍तक देख-समझ सके। 

प्रखरता : अवधेश प्रीत
         हना चाहिए कि हिन्‍दी के एक अनूठे कथाकार का रचनाकार -व्‍यक्तित्‍व अपना आकार लगभग ग्रहण कर चुका है। हमारा आलोचना तंत्र आज अचेत न रहता अथवा कारगर-क्रियाशील रहा होता तो यह तार्किक निष्‍पति अब तक बेशक आम हो चुकी होती कि अमुक कथाकार कैसे हमारे साहित्‍य में मौलिक दृष्टि-सृष्टि वाला एक विशिष्‍ट रचनाकार है। 
        थ्‍य-कथानकों का विवरणकार भर नहीं बल्कि अर्जित-लक्षित संवेदनाओं और अनुभूतियों का अनोखा हृदय-प्रवेशकार भी। अपनी तरह का अपना गद्य रचने वाला।.दिमाग में अस्‍सी के दशक का कदम कुआं क्षेत्र घूम रहा है। वहीं दैनिक पाटलिपुत्र टाइम्‍स के दफ्तर में उनसे उनके उस समय के सहयोगी ( हाल ही रायपुर में बंद हुए दैनिक जनसत्‍ता टाइम्‍स के स्‍थानीय सम्‍पादक ) कवि-मित्र अनिल विभाकर ने पहला परिचय कराया था। कथाकार विकास कुमार झा और सलिल सुधाकर वहीं अर्थात उसी अखबार मे थे।,पटना आना-जाना लगा रहने के कारण ही नहीं बल्कि रचनात्‍मक आदान -प्रदान ने रिश्‍ते को मामूली परिचय से मित्रता और घनिष्‍टता की परिणति तक पहुचाया। ....तो, चौथाई सदी से भी अधि‍क समय से हृदय से जुड़े इस मित्र के साथ घर-परिवार से लेकर दुनिया-जहान और बिहार के वर्तमान से लेकर देश-समाज के विभिन्‍न पहलुओं पर निर्बन्‍ध अनौपचारिक चर्चा-विमर्श। 
         हाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन-युग पर आधारित मेरे आगामी उपन्‍यास '' कंथा '' ( फिलहाल 'नवनीत ' में करीब डेढ़ साल से इसका धारावाहिक प्रकाशन जारी ) के प्रति मित्र की खास जिज्ञासा-शुभकामनाएं। इसी क्रम में 'संगमन ' के अंतिम दिन प्रख्‍यात कथाकार डा.काशी नाथ सिंह की अध्‍यक्षता में प्रसाद-मन्दिर परिसर में हुई संगोष्‍ठी का स्‍मरण। 
         उस संगोष्‍ठी को प्रसाद जी के पुत्र रत्‍नशंकर प्रसाद जी ( निधन : 08 जनवरी 2006 ) की भी गरिमामयी उपस्थिति प्राप्‍त हुई थी। मेरी जिज्ञासा पर अवधेश प्रीत अपने निर्माणाधीन उपन्‍यास के बारे में बताते हैं। उनकी यह रचना पटना के अशोक राजपथ को केन्‍द्र बना कर देश के पिछले करीब दो दशक के काल खण्‍ड को अपने ढंग से खोलेगी-खंगालेगी और उसके आलोक में वर्तमान समय-समाज को समझने का महती प्रयास करेगी। 
         तना कुछ जान-सुन लेने के बाद अवधेश के धड़कते गद्य के परिचितों-प्रेमियों को निश्‍चय ही उनके इस उपन्‍यास का बेसब्री से इंतजार करना पड़ेगा। बात ही बात में काफी समय हो चला था। चलने को उठा तो सामने आकर अरुण नारायण ने अपने मोबाइल से फ्लैश चमकाना शुरू कर दिया। मुलाकात दृश्‍यानूदित भी होने लगी तो लगा कि तकनीक ने इन्‍हीं कुछ वर्षों में कितना कुछ बदल और सहज कर दिया है। पहले की कितनी सारी मुलाकातें आज कहां दृश्‍यांकित हैं...


अंतरंगता : पटना में 21 अक्‍टूबर को कथाकार-साथी अवधेश प्रीत के साथ।

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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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