रामविलास शताब्‍दी वर्ष का प्रारम्‍भ

महान सर्जक, वि‍राट कार्य 

महान शख्‍सीयत : रामविलास शर्मा (1912–2000) 



श्‍यामबिहारी श्‍यामल
         आज ( 10 अक्‍टूबर 2011 ) से डा. रामविलास शर्मा की शताब्‍दी शुरू हो रही है। वह हमारी भाषा के महानतम सर्जक व्‍यक्तित्‍व हैं। रामविलास जी हिन्‍दी के ऐसे अकेले आलोचक है जिनकी निगाह अपनी भाषा के लगभग सभी प्रतिनिधि‍ रचनाकारों पर ही नहीं गयी बल्कि उन्‍होंने अपने देशकाल के जीवन, राजनीति, अर्थशास्‍त्र और इतिहास आदि अनुशासनों की भी विशद समालोचन-समीक्षा की। 
चिन्‍तन की मुद्रा : रामविलास जी
         उन्‍होंने जितने विस्‍तार और जैसी गहराई में जाकर भारतेन्‍दु हरिश्‍चन्‍द्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी,रामचन्‍द्र शुक्‍ल, प्रेमचन्‍द, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्‍त त्रिपाठी 'निराला', राहुल सांकृत्‍यायन, सुमित्रानन्‍दन पंत और यशपाल से लेकर मुक्तिबोध आदि तक के साहित्‍य-समग्र का विश्‍लेषण-मूल्‍यांकन किया, यह सभी अर्थों में अभूतपूर्व  और श्रम-परिधि‍ की दृष्टि से तो दर्जनाधिक आलोचकों के बराबर का विशद-विराट कार्य है। 
         नके बारे में एक प्रसंग, जो मुझे विख्‍यात आलोचक डा. चन्‍द्रबली सिंह ( कुछ ही माह पहले दिवंगत हुए हैं ) ने साक्षात्‍कार के दौरान पिछले ही साल बताया था : यह तो सर्वज्ञात है कि आगरे में चन्‍द्रबली जी ने रामविलास जी के साथ सहयोगी के रूप में अध्‍यापन-कार्य किया था। दोनों ही अंग्रेजी के आचार्य। बाद में चन्‍द्रबली बनारस आ गये जबकि डा. शर्मा दिल्‍ली। 
         भौगोलिक दूरी के बावजूद दोनों में घनिष्‍टता बनी रही। चन्‍द्रबली जी कुछ तो अपने अनुवाद-अभियान और कुछ स्‍वास्‍थ्‍य विषयक कारणों से आलोचना क्षेत्र में ज्‍यादा योगदान नहीं दे पा रहे थे। यह बात रामविलास को भा नहीं रही थी। कहना चाहिए कि इससे वह उनसे खासे खफा चलने लगे। उनकी यह नाराजगी एक बार कुछ यों छलकी कि अपनी किताब ' राष्‍ट्रीय आन्‍दोलन और हिन्‍दी साहित्‍य ' समर्पित करते हुए उन्‍होंने समर्पण वाक्‍य कुछ यों दर्ज किया '' हिन्‍दी के भूतपूर्व आलोचक चन्‍द्रबली सिंह को...''। 
         कुछ समय बाद दोनों में जब मुलाकात हुई तो चन्‍द्रबली ने उक्‍त समर्पण-वाक्‍य का जिक्र किया। डा. शर्मा ने अपना रोष स्‍पष्‍ट शब्दों में व्‍यक्‍त किया और कहा ''... तुमने आलोचना-कार्य बन्‍द कर दिया तो तुम्‍हें ' भूतपूर्व आलोचक ' ही तो कहा जायेगा न... ''। चन्‍द्रबली ने जवाब दिया कि उनका आलोचना-कार्य बाधित हुआ है, बन्‍द नहीं। डा. शर्मा मुस्‍कुराये, '' ...ठीक है, तुम जब लिखने लगोगे तो मुझे कुछ ज्‍यादा सुधार तो करना न होगा ...किताब के नये संस्‍करण में ' भूतपूर्व ' के आगे सिर्फ ' अ ' भर लगा दूंगा... ''।

महाकवि निराला पर रामविलास जी की विख्‍यात कविता
महाकवि निराला

यह कवि अपराजेय निराला


यह कवि अपराजेय निराला,
जिसको मिला गरल का प्याला,
ढहा और तन टूट चुका है
पर जिसका माथा न झुका है,
नीली नसें खिंची हैं कैसी
मानचित्र में नदियाँ जैसी,
शिथिल त्वचा,ढल-ढल है छाती,
लेकिन अभी संभाले थाती,
और उठाए विजय पताका
यह कवि है अपनी जनता का !

स्‍वर्ण रेख-सी उसकी रचना,
काल-निकष पर अमर अर्चना !
एक भाग्य की और पराजय,
एक और हिंदी जन की जय,
परदुखकातर कवि की भाषा,
यह अपने भविष्य की आशा-
'माँ अपने आलोक निखारो,
नर को नरक -त्रास से वारो !'
भारत के इस रामराज्य पर,
हे कवि तुम साक्षात व्यंग्य-शर !

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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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