ग़ज़ल की हद से अब निकलो भी बाहर
श्याम बिहारी श्यामल
तमाशबीन हैं, हक़ीक़त से जिन्हें प्यार रहा
चुनांचे परेशान ही नहीं, सच अब हार रहा
ज़ाल-ए-फ़रेब निगल न जाए आस्मान सारा
सुने यहां कौन, किस कुएं से कौन पुकार रहा
इरादे किस हद तक हो चुके खौफ़नाक उसके
अटारी से पिटारी में चांद वह उतार रहा
कोई तो टोके, आगे बढ़कर अब भी रोके
खूबसूरत लफ्ज़ एक-एक कर वह मार रहा
श्यामल ग़ज़ल की हद से अब निकलो भी बाहर
अदब-ए-वक़्त पामाल, वह रो ज़ार-ज़ार रहा
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