हिज़रत यूं कैसे पुरसुकूं
श्याम बिहारी श्यामल
सफ़र आखिर किस वस्ल की आस में
चांद भटक रहा किसकी तलाश में
सरक गयीं कैसे हज़ारों सदियां
आग आज भी वही सांस-सांस में
कैसी-कैसी लानत-मलामतें
अज़ब-ग़ज़ब ताक़तें नेह-फांस में
मुज़रिम न मुद्दई कोई सामने
फैसला है दरबार-ए-ख़ास में
श्यामल हिज़रत यूं कैसे पुरसुकूं
रंग बेशुमार हिज्रे उदास में
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वस्ल = मिलन
हिज़रत = अपनी ज़मीं से बेदखली, देश-त्याग
पुरसुकूं = सुकून से भरा हुआ
पुरसुकूं = सुकून से भरा हुआ
हिज्र = वियोग
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