आब-ए-तल्ख़ के बने हैं हमारे हालात
श्याम बिहारी श्यामल
ब्रश, रंग, हाथ या दिमाग, किसकी करामात
कैनवास भौंचक, सुन तस्वीर के सवालात
ज़रा-सा रंग, कुछ लकीरें व बुनी परछाईं
कैसे पेश अश'आरी मंज़रबंद लम्हात
कौन डाल रहा है जान इस नक्श के भीतर
कैसे बन रही अफ्सान मन की हरेक बात
चंद बूंदों का कमाल चाँद-सूरज सामने
उतर कर आ गए हैं पास नायाब ज़ज्बात
श्यामल कौन समझाए किसे कब तक आखिर
आब-ए-तल्ख़ के बने हैं हमारे हालात
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अश'आरी = अश'आर का
मंज़रबंद = साकार
आब-ए-तल्ख़ =आंसू
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