असलहा चिह्न-ए-समीना
श्याम बिहारी श्यामल
ज़ोर-ए-बाज़ू जब जीना
सूखे क्योंकर यह पसीना
क्या आबे ज़न्नत, क्या ज़हर
ज़िन्दगी ने सीखा पीना
इतना कैसे ज़ज्ब इसमें
कहां कम सागर से सीना
लूटा आसमां को किसने
चैन समंदरों का छीना
श्यामल ग़ज़ब खेल सामने
असलहा चिह्न-ए-समीना
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ज़ोर-ए-बाज़ू = हाथों के बल पर
आबे ज़न्नत = स्वर्ग का जल
ज़ज्ब = सोखा हुआ
असलहा = हथियार
चिह्न-ए-समीना = शान्ति का प्रतीक
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