कैसा दौर-ए-फ़रेब ज़ुल्मतक़दा
श्याम बिहारी श्यामल
तराजू खबरदार, भेद खुल न जाए कहीं
बटखरा सहमा हुआ, खुद तुल न जाए कहीं
तौलने पर तुला जो मुझे, बेचैन क्यों है
क्यों उसे लगता, हवा में झुल न जाए कहीं
नूर-ए-उल्फ़त का मतलब अब समझ आया
खौफज़दा अब वह, बत्ती गुल न जाए कहीं
तीन-पांच में रहता जो मशगूल दिन-रात
फिक्र दिखा रहा, ईमान घुल न जाए कहीं
श्यामल कैसा दौर-ए-फ़रेब ज़ुल्मतक़दा
अमानत-ए-अजदाद भूल ना जाए कहीं
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नूर-ए-उल्फ़त = प्रेम की आभा
ज़ुल्मतक़दा = अन्धकार से भरा स्थान
अमानत-ए-अजदाद = पुरखों की थाती
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