रोती हैं बुलंदियां ज़ार-ज़ार


ज़मीं पर उतरना है, यहां से कौन रास्ता

श्याम बिहारी श्यामल 

सन्नाटे से कब तक दिखाए कोई प्यार    
मन ही मन रोती हैं बुलंदियां ज़ार-ज़ार   

अदम यह, कहां यहां दरिया-ओ-शज़र कोई 
मौज-ओ-गुल की आये कैसे कभी बयार 

बांझ चुप्पी, बेचैन बे-अत्फाल हवाएं 
कब तक बना रहेगा आसमां यूं अग्यार   

हिलना-डुलना तक मुहाल, असीरी हालात 
हमेशा के लिए मुलतवी कब से असफार 

ज़मीं पर उतरना है, यहां से कौन रास्ता 
श्यामल से पूछती है ऊँची वह मीनार

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अदम = शून्य
दरिया-ओ-शज़र = नदी और पेड़
बे-अत्फाल = बिना बच्चों वाला / वाली
अग्यार = अजनबी ( ग़ैर का बहु वचन )
मुहाल = कठिन, असंभव 
असीरी = क़ैदी की तरह
मुल्तवी = स्थगित 
असफार = यात्राएं ( सफ़र का बहुवचन )






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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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