सामने मक़सद एक नई दुनिया तराशना
श्याम बिहारी श्यामल
पैग़ाम-ए-क़ायनात नए पल संवारना
गड़े ग़म खोज-खोज ऐसे में क्या उखाड़ना
ज़िंदगी ने बेशक़ ज़ख्म ही ज़ख्म नहीं दिए
मरहम दिए, सिखाया दर्द को भी पछाड़ना
छत दी, कुनबा बनाया, पूरा मुक़ाम बख्शा
तब सरेनग़मा रोना क्या दहाड़े मारना
यह क्या कि ज़हां देखे जो खिला हंसता मुखड़ा
काम सरेग़ज़ल अश्क़ों को उसका पुकारना
कहां ज़रूरी चादर-ए-अत्फ़-ए-सामईन
क़ुबूल नहीं तिज़ारत-ए-अल्फाज़ उछालना
श्यामल कोशिश दिल का बेजा तमाशा न बने
सामने मक़सद एक नई दुनिया तराशना
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पैग़ाम-ए-क़ायनात = सृष्टि का सन्देश
चादर-ए-अत्फ़-सामईन = श्रोताओं की सहानुभूति
तिज़ारत-ए-अल्फाज़ = शब्दों का व्यापार
बेजा = अनुचित
जवाब देंहटाएंज़िंदगी ने बेशक़ ज़ख्म ही ज़ख्म नहीं दिए
मरहम दिए, सिखाया दर्द को भी पछाड़ना ...वाह, क्या बात…लाजवाब