गुल जिन्हें चुभे ताज़िंदगी नहीं संभले हैं


खाक़ जो हुए दरअसल चांदनी से जले हैं 

श्याम बिहारी श्यामल 

राह-ए-ज़िंदगी में मंज़र क्या-क्या चले हैं 
गुल जिन्हें चुभे ताज़िंदगी नहीं संभले हैं  

कांटे कहां यहां बने कभी राह के कांटे 
ज़रा-सा लहू पीकर फ़ौरन बाहर निकले हैं  

आग कराती रही दूर से अहसास अपना 
खाक़ जो हुए दरअसल चांदनी से जले हैं  

ज़रा-सी खराबी भी मशीन को नहीं बर्दाश्त  
टूटे लोग कहां रुके, बिखरे चाहे भले हैं  

श्यामल अश्क़ों ने थमकर बना दिया समंदर  
बेचैनी बयां करती रही प्यास से छले हैं 





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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