कंकड़ किसी आंत में कहां पचा है
श्याम बिहारी श्यामल
अंधेरे ने उजाले को रचा है
रात है तभी यहां दिन भी बचा है
सन्नाटे ने ही किया इसे मुमकिन
ज़माने में शोर का शोर मचा है
ज़माने में शोर का शोर मचा है
ज़हां में कितनी भी लानत-मलामत
कंकड़ किसी आंत में कहां पचा है
सच तो अंगारा है दहकता हुआ
हथेली पर कब यह किसे जंचा है
हथेली पर कब यह किसे जंचा है
उतराया जो है मुर्दा है बेशक़
श्यामल जो डूबा मुसलसल सचा है
श्यामल जो डूबा मुसलसल सचा है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-10-2018) को "किसे अच्छी नहीं लगती" (चर्चा अंक-3132) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी