ग़ज़ल वह जो खुशरंग ने गाई है
श्याम बिहारी श्यामल
ज़माने से यह बुझ कहाँ पाई है
आग वह जो पानी ने लगाई है
हम ज़ुबां-ओ-लफ़्ज संवारते रहे
लम्हे ने नज़र में सदी बताई है
दिल से निकली थी दिल तक पहुंची
गज़ल वह जो खुशरंग ने गाई है
राह में मिली जब ज़िंदगी अचानक
मौत ने कुएं में छलांग लगाई है
श्यामल तस्वीर-ए-जहाँ कई यहां
दिलकश वह जो अश्कों ने बनाई है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-10-2018) को "सब के सब चुप हैं" (चर्चा अंक-3126) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'