थर-थर कभी तो धू-धू अक्सर
श्याम बिहारी श्यामल
ज़मीं आग की जिस पर कागज़ का घर
जिंदगी ने दिखा दिए क्या-क्या मंज़र
लपकता रहा ऊपर सोने का जाल
पसरा हवा में रंग-बिरंगा-सा डर
हक़ीम-ए-दिल के पास अब काम नहीं
बेदिली का आया फायदा निकल कर
आदमी वह पहुंचा सौंपने सब कुछ
क्या करेंगे हमीं चांद-सूरज ले कर
लगा रहा हांक आज लुआठी वाला
चलो देखें बाज़ार अभी पहुंच कर
फ़ना होने के किस्से सुने थे बहुत
तजुर्बा चमक उठा दरिया में जल कर
परबत न दीवार वही अदना साहिल
मचल रहा कब से क़ैदबंद समंदर
हुजूम में सुनूंगा अपना सन्नाटा
बजता कैसा ज़ंजीरबंद बवंडर
श्यामल थर-थर कभी तो धू-धू अक्सर
भूकंप-ज्वालामुखी क्या-क्या तेरे अंदर
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